कुछ बंद
कुछ बंद ऐ ख़ुदा -- ना तो हीरे रतन की मैं खान मांगती हूँ चाँद,तारे,सूरज ना आसमान मांगती हूँ मेरे हिस्से की धूप का बस दे दे किला जरुरत की जीस्त के सामान मांगती हूँ । फाड़कर ना दे छप्पर कि पागल हो जाऊँ रूठकर ना दे मन का कि घायल हो जाऊँ अपने दुवाओं की सारी कतरनें बख़्श देना कि तेरी बंदगी की ख़ुदा मैं क़ायल हो जाऊँ । गुज़ारिश है आँखों में वो तदवीर बना देना मेरी ख़्वाहिशों का मेरे ...