'' प्रीत का दीया जला दो आकर ''
इक बार उतर जो आओ तुम
विरहाकुल के अकथ नाद से
परिज्ञान तेरा भी हो जायेगा ,
कितने तुम पर गीत लिखे हैं
कितने स्वर साधे हैं तुम पर
विकल रागिनी के झंकारों से
उर झंकृत तेरा भी हो जायेगा ,
सांसों का हर तार है जोड़ा
तेरे स्मृति की वीणा,सितार में
मेरे गीतों की गुंजित ध्वनि में
अमर नाम तेरा भी हो जायेगा ,
आकर पुलिन पर सौहार्द का
बहा दो मलयानील सा झोंका
लहरों के नेहल उद्गम से भींग
तर अन्तर तेरा भी हो जायेगा ,
तुम देखे बस श्रृंगार आनन का
प्रीत का दीया जला दो आकर
प्रणय प्रखर तेरा भी हो जायेगा ,
मुझमें दरश तेरा भी हो जायेगा ,
तुम्हीं हो सूत्रधार काव्योत्पत्ति के
उतर आओ भावों की ध्रुवनंदा में
नेहल-- सुन्दर ,आनन --मुखड़ा
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शैल सिंह