'नारी की फुफकार'
नारी की फुफकार आज की हर अबला भारत की अब सबला बनकर जागी है निरीह दया की मूर्ति ना समझो दबी चिन्गारी बन गयी बागी है । बहनों उठो पुकारता समय पद्मिनी सा जौहर दिखलाओ दुर्गावती,लक्ष्मीबाई सरीखी समय पर रणचंडी बन जाओ । अब गया वक्त देहरी भीतर बैठ सिंगार सजाने को माथे तिलक लगा मचली चूड़ी तलवार उठाने को । तोड़ कर बन्धन पायल का और सुहाग की लाली का माँ अम्बा की ज्वाला बन हाहाकार मचा दे काली का । भारत का गौरव मेरा यौवन उसकी अस्मिता मेरी जवानी शस्य श्यामला मातृभूमि पर शत बार तरुणाई मेरी कुर्बानी । बाँझ,निपूती मत कह माँ कुछ अस्तित्व हमारा मानो हम भी ज़िगर के टुकड़े हैं हमें सुता नहीं सुत जानो । आँधी में भी जला करेगी निष्कम्प दीप की ज्योति सोते से अब तो जगा दिया माँ क्यों क्लान्त हो रोती । लिंग की भयावहता ने ललकारा चलो माँ का कर्...