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'नारी की फुफकार'

    नारी की फुफकार आज की हर अबला भारत की अब सबला बनकर जागी है निरीह दया की मूर्ति ना समझो  दबी चिन्गारी बन गयी बागी है ।  बहनों उठो पुकारता समय  पद्मिनी सा जौहर दिखलाओ  दुर्गावती,लक्ष्मीबाई सरीखी  समय पर रणचंडी बन जाओ ।  अब गया वक्त देहरी भीतर  बैठ सिंगार सजाने को  माथे तिलक लगा मचली  चूड़ी तलवार उठाने  को ।  तोड़ कर बन्धन पायल का  और सुहाग की लाली का  माँ अम्बा की ज्वाला बन  हाहाकार मचा दे काली का ।  भारत का गौरव मेरा यौवन  उसकी अस्मिता मेरी जवानी  शस्य श्यामला मातृभूमि पर  शत बार तरुणाई मेरी कुर्बानी ।  बाँझ,निपूती मत कह माँ  कुछ अस्तित्व हमारा मानो  हम भी ज़िगर के टुकड़े हैं  हमें सुता नहीं सुत जानो ।  आँधी में भी जला करेगी  निष्कम्प दीप की ज्योति  सोते से अब तो जगा दिया  माँ क्यों क्लान्त हो रोती ।  लिंग की भयावहता ने ललकारा  चलो माँ का कर्...

''मन से मावस की रात भगाएं'

मन से मावस की कारी रात भगाएं आओ हम सब मिलजुल कर  तम् के नीचे नेह का दीप जलाएं , भरें तमस के आँचल उजियारा घर पूनम की रात मीत बुलायें , स्नेह की ऐसी अलख जगायें मन से मावस की रात भगाएं , इक दूजे के ग़म शूल खींचकर दुःख-दर्द गले मिल बांटें हम  , कण-कण प्रकाश की लौ फेरकर  शुभ दीवाली सुपर्व मनायें हम , करें बात जब लगे संगीत सा झिलमिल फूटें सितारे फुलझड़ियों सा , रोमांच भरा हो  मिलन हमारा लगे अट्टहास पटाखों की लड़ियों सा , समत्व सत्ता का आलोक बिछाकर घर-घर जाकर मतभेद मिटाकर , खील बताशे खा-खाकर दे बधाई खुशियों की मन में लहर जगाकर , बरस-बरस का महान पर्व बन्धु ये  कड़वाहट का आओ म्लेच्छ भगायें , स्नेह की धार से नवकिरण बार  एकता का जगमग दीप जलायें ।