मंगलवार, 7 जनवरी 2020

" वक्त गुजरे न लौट के आएंगे कभी "

" वक्त गुजरे न लौट के आएंगे कभी "


मुझे शिकवा है तेरी ख़ामोशियों से 
बग़ावत न कर बैठे कहीं सब्र मेरा
ऐसे तहज़ीब इख़्तियार कर पूछते  
ढलकता क्यों है चश्म से अब्र मेरा ,

क्यों मेरी खुशियों से तुझे अदावत 
कि करे मौन उपवास तक़रार ऐसे 
तेरे हिस्से का लम्हा तनहा गुज़रता 
किया बिसात से बहुत  प्यार तुझसे

न दिखे दिल का दर्द न मेरी तड़प 
अबोध शिशु सी मैं भरुं किलकारी
बेंध शब्दों में भाव करूं वार्तालाप
पढ़ ख़ामोशी तेरी भड़के चिन्गारी ,

होता नहीं बर्दाश्त चुप का सन्नाटा 
मैं भी ओढ़ ली अग़र मौनी ओढ़नी
फिर न कहना बात कभी क़द्र की  
कह दूँगी मैं भी कहाँ फ़ुर्सत इतनी ,

तूफां आके चले जायेंगे ज़िन्दगी से
वक़्त गुजरे न लौट के आएंगे कभी
कभी अंतस की गहराई में ग़र डूबे 
तो जज़्बात गिला  कर जायेंगे सभी ।

सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 

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