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तन्हाई ने सीखा दिया जीने का गुर

        तन्हाई ने सीखा दिया जीने का गुर  कभी शरच्चन्द्रिका सी विहँस अद्भुत जगत के दरश करा देती  कभी झटक परिहास कर धूसर विश्व में छोड़ चली जाती तन्हाई कभी यादों,सोचों का साम्राज्य खड़ा कर गहन सन्नाटा देती चीर कभी मन के निर्मम,बोझल तम को आलोक दिखा जाती तन्हाई  , कभी अन्तर कर देती क्लेशित,कभी नाभाष प्रफुल्लता भर देती कभी निराशा के अंचल हर्षातिरेक से आस की पूर्णिमा भर देती कभी तन्हाई के नैराश्य जमीं पर सुख-दुःख के सरसिज बो देती कभी जीने की राह सुझा जाती कभी झट धीरज संचित खो देती , कभी विलास की रानी बनकर मृत स्पन्दन में किसलय भर देती कभी अलौकिक,अद्भुत लोक में पहुँचा मन मतवाला कर देती कभी नयनों में खारा सागर कभी अविच्छिन्न उत्साह से भर देती कभी एकाकी जीवन उपवन,शीतल पवन बन सुरभित कर देती , कभी हताश,निराशा,विषाद,अवसाद की ऊसरता मिटला जाती कभी जीवन सरिता का उद्गम बन,मरुमय वक्ष उर्वरा बना जाती कभी बाल सहचरी बन तन्हाई ,तन्हाई की नीरवता सहला जाती कभी ख़ुशी का अलख जगाती...