गुरुवार, 4 जून 2020

याद पर कविता " उसकी यादों के महक सिवा "

ग़म सीने में छुपाये हँसी होंठों पे रखकर
रोक के आँसू आँखों में मुस्कराना सीख लिया
कबतक बहायें आँसू नैन कबतक ग़म का ग़म करें
जख़्मों को बना कर तराना मैंने गुनगुनाना सीख लिया ।  

बड़ी तल्ख़ी से ज़माने ने सवालात किये
सीखा हुनर लब सील कर जज़्बात छुपाने का 
थक गई है ज़िंदगी भी ढो-ढोकर कर्ज़ मोहब्बत का 
कब तक रखूँ सिलसिला आँसुओं से ब्याज़ चुकाने का ।

करना बदनाम उसे मेरी फ़ितरत में नहीं
बेक़सूर बेबाक़ी से उसको बताना सीख लिया
शाद था जबकि बेहिसाब ज़ालिम की दग़ा पे दिल
हो न वो बदनाम बहारों पे इल्ज़ाम लगाना सीख लिया ।

मुझसे मुझे जुदा कर जाने कहाँ गया वो
बस उम्मीदों के पांव बंधी दे खोल कोई ज़ंजीरें
उसकी यादों के महक सिवा चाहूँ न मैं तो कुछ भी 
बस दर्दे-दिल का सुकूं नयन में दे छोड़ संजोई तस्वीरें ।

करती है सियासत कैसी मुहब्बत भी तो
ज़िन्दगी को हर क़दम देना इम्तिहान होता है
लगे ईश्क में मुद्दत सा हर पल हर लम्हा जुदाई का
आँखों में पलते अज़ीब ख़्वाब लब पे दर्दे जाम होता है ।

सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह


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