ढलका सूरज भी आस्मा से निढाल हो
ढलका सूरज भी आस्मा से निढाल हो ( १ ) है कलमा,ग़ज़ल या ये शायर की रुबाई हांल-ए-दिल सुन तबियत सिहर जाएगी , जब भी देखेगी दरपन में अपना ही मुख भोली मासूम तस्वीर मेरी नज़र आएगी , चाहे जितनी जला ले तूं शम्मा इंतजार की रुत रुठी ना जाने रुठकर किधर जाएगी , कुछ कसर छोड़ी होती कर वफ़ा की क़दर क्या पता था नज़र बावफ़ा तेरी बदल जाएगी , कितने आँसू बहाये ज़ज्बे मेरे सितम से तेरे इक दिन वही बात आईना रुबरु कराएगी हजारों मौजें दफ़न कर लीं मेरी खामोशियाँ ऐ दोस्त तेरी ऑंखें भी शर्म से झुक जाएगी , ( १ ) ये आजू-बाजू तेरे जो आज गुंचे खिले हैं बह मत रौ में किरन सी बिखर जाएगी , तेरी पलकों पे टुकड़े कुछ बुलंदी के जो क्यूँ दिखाती मुझे क्या वो मेरे घर आएंगी , बहेंगी मेरे भी परचम की निरंतर आँधियाँ मेरा रुतबा सुन सारी ख़ुमारी उत्तर जाएगी , ढलकता सूरज भी है आस...