गांव पर कविता '' भोजपुरी की मिठास में गांव बसता जहाँ है ''
गांव पर कविता बासी-बासी सी लगती शहर की फिज़ां है मेरे गांव सी कहाँ मिलती यहाँ ताज़ी हवा है , सर्दी,गर्मी,वर्षा,वसंत भी अनूठे मेरे गांव के शहर के कोलाहल में दिन गुजरता कहाँ है खुले आसमान के पटल तले दूर-सुदूर तक लहलहाते खेतों में हरियाली दिखती जहाँ है , वो गाँव की रुखी रोटी का स्वादिष्ट निवाला तृप्ति का बोध पिज्जा,बर्गर में होता कहाँ है देख गांवों की रौनक़ लगता रोज इतवार है इतवार का शिद्दत से इन्तज़ार होता यहाँ है , कुनबे-कुटुम्ब संग गूँजता हँसी का ठहाका चौपाल जगत प र इनारों की लगता जहाँ है सड़कें,बिजली,मकां,पार्क फिर भी वीरानी दीयों के रौशनी में मेरा गांव हँसता जहाँ है , जहाँ चहचहा अगवानी पाँखी करें भोर की महकते पुष्पों से वन-उपवन हर्षता जहाँ है जहाँ रिश्तों की रेशमी डोरियाँ है भाईचारा भोजपुरी की मिठास में गांव बसता जहाँ है , नीम,बरगद,पीपल की जहाँ छाँव...