शनिवार, 23 अप्रैल 2022

आँसू ग़ज़ल

                       आँसू ग़ज़ल 


कहीं कोई जान ना जाए  मेरे आँसुओं का राज
इसलिए रो लेती भर आँखों में ही दर्द सारी रात ।

हद तोड़ पलकों की ढरकते आँसू जो गालों पर 
लिख कह देते अंजन से सारे दर्द रूख़सारों पर
तूफ़ां सा उठता ज्वार आँखों के गहरे समंदर में
अश्क़ों से भींगे दामन दिखाऊं किसे ये मंजर मैं ।

दिखा ना सकूं जो जख़्म कह सकूं नहीं जो दर्द 
समझ लेना बहते आँसुओं से दिल का हर मर्ज़
आँसू से लिखा अफ़साना है जज़्बातों का मोती
कितने भी करूं जतन मोहब्बत कम नहीं होती ।

जो लमहे गुजारे चाँदनी रातों में संग चलते हुए  
अक्सर लड़े उल्फ़त की बातों में संग हँसते हुए 
उन्हीं बातों को याद कर सावन,भादों हुईं आँखें
सुलगे सेज ना आती नींद चुभती कांटों सी रातें ।

तेरे ख़्वाबों में गुज़रीं जाने कित रातें बिना सोये 
कभी आया नहीं जी को सुकूँ आराम बिना रोये
जिस डगर पकड़ बांहें चले थे हमसफ़र बनकर
वो डगर निरख पथराईं आँखें छलक-छलककर ।।

सर्वाधिकार सुरक्षित 
                 शैल सिंह 

मंगलवार, 19 अप्रैल 2022

हिन्दुत्व पर कविता " ग़र ना जागा,हिन्दुत्व का,असली भूगोल बदल जाएगा "

हिन्दुत्व पर कविता " ग़र ना जागा,हिन्दुत्व का,असली भूगोल बदल जाएगा "


हरगिज़ ना भूलना  मान सम्मान तुम सनातन धर्म का 
जागो,जागो हिन्दुओं जागो वरना सर्वनाश हो जायेगा
जप राम का नाम स्वत: जगाओ अन्दर के भगवा को
किया गद्दारी ग़र देशधर्म से निश्चय विनाश हो जाएगा ।

ग़र ना हुआ तुम भोले शंकर,श्रीराम,कृष्ण,हनुमान का 
ग़र नहीं रखा दिल में जुनूँ अखंड हिन्दुत्व के आन का 
ग़र नहीं भरा तूं उर में गूंज हर-हर महादेव के नाद का
ग़र ना जागा,हिन्दुत्व का,असली भूगोल बदल जाएगा ।

माला के मनके बिखर गए ग़र जात-पांत में बंटे रहे ग़र
हिंदुत्व भाव से मुँख मोड़,निज के स्वार्थ में फँसे रहे ग़र
ग़र ना चेते तुम वर्तमान के आँखों देखे बर्बर हालात पर 
छुप के दुश्मन घात करेगा डटे नहीं तुम धर्म रक्षार्थ ग़र ।

तन भगवा मन भगवा,माँ के मांग का भगवा रंग सिन्दुर 
भगवा दीये की लौ का रंग भगवा रंग में चंदा,सूरज चूर
जनेऊ,मंदिर,तिलक,कलावा हिंन्दू प्रतीक के दिव्य रूप 
रंगना भगवा देश समूचा भगवा केशरीनंदन का स्वरूप ।

केसरिया के आन लिए अपनी मातृभूमि की शान लिए
ले मशाल हाथों में लाना,उबाल लहू में हिन्दुस्तान लिए 
हिन्दुत्व लिए रख प्राण शूली पे कट्टर हिन्दू बनना होगा
बब्बर शेर सा दहाड़कर आजाद,भगतसिंह बनना होगा ।

सत्य सनातन धर्म मार्ग पर राम नाम जप चलना होगा
ख़ैरात नहीं ये देश हमारा इसकी रक्षा में लड़ना होगा
प्रतिघात में जल्लादों संग जल्लाद हमें भी बनना होगा
ख़िलाफ़त जाने वाले साँपों का भी फ़न कुचलना होगा ।

ग़र नहीं हुए तुम संगठित हिन्दुओं फिर भुगतोगे जागो
शीश क़लम करवाना ग़र तो शिथिल पड़े रहो अभागों
सोते रहो सनातन वालों तुम,जेहादी कलमा पढ़वायेंगे 
हिन्दुओं का अस्तित्व मिटा फिर से पराधीन बनवायेंगे ।

काली,चण्डी,दुर्गा आर्या सा रूप वरण भी करना होगा
विश्वासघाती दुर्जनों लिए  भी रणनीति तय करना होगा
टिक नहीं सकता मुल्क़ कोई भगवामय भारत के आगे
ब्रह्मांड भी होगा नतमस्तक भगवा की ताकत के आगे ।।

सर्वाधिकार सुरक्षित 
                   शैल सिंह 

बचपन कितना सलोना था

बचपन कितना सलोना था---                                           मीठी-मीठी यादें भूली बिसरी बातें पल स्वर्णिम सुहाना  नटखट भोलापन यारों से क...