आँसू ग़ज़ल
आँसू ग़ज़ल कहीं कोई जान ना जाए मेरे आँसुओं का राज इसलिए रो लेती भर आँखों में ही दर्द सारी रात । हद तोड़ पलकों की ढरकते आँसू जो गालों पर लिख कह देते अंजन से सारे दर्द रूख़सारों पर तूफ़ां सा उठता ज्वार आँखों के गहरे समंदर में अश्क़ों से भींगे दामन दिखाऊं किसे ये मंजर मैं । दिखा ना सकूं जो जख़्म कह सकूं नहीं जो दर्द समझ लेना बहते आँसुओं से दिल का हर मर्ज़ आँसू से लिखा अफ़साना है जज़्बातों का मोती कितने भी करूं जतन मोहब्बत कम नहीं होती । जो लमहे गुजारे चाँदनी रातों में संग चलते हुए अक्सर लड़े उल्फ़त की बातों में संग हँसते हुए उन्हीं बातों को याद कर सावन,भादों हुईं आँखें सुलगे सेज ना आती नींद चुभती कांटों सी रातें । तेरे ख़्वाबों में गुज़रीं जाने कित रातें बिना सोये कभी आया नहीं जी को सुकूँ आराम बिना रोये जिस डगर पकड़ बांहें चले थे हमसफ़र बनकर वो डगर निरख पथराईं आँखें छलक-छलककर ।। सर्वाधिकार सुरक्षित ...