'' तृषित अंजलि का अमृत जल पिला के ''
दूर मंजिल बहुत,हूँ तन्हा सफ़र में
मगर बांटने हर-पल तन्हाईयाँ
साथ चलता रहा चाँद मेरे सफ़र में।
कभी मुख पे डाले घटाओं के घूँघट
कभी बादलों के झरोखों से झांके
कभी सुख की लाली का आलम लिए
दर्द की मांग भर जाये चुपके से आके।
कभी वैरागि मन की पगडंडियों पर
तृषित अंजलि का अमृत जल पिला के
कभी फायदा भोलेपन का उठाता
लुका-छिपी कर छलता रहा आते-जाते।
कभी सोई अनुभूतियों को जगाता
कभी थम सा जाता पराजय पर आके
कभी झकझोर कर गुदगुदाता हँसाता
इक निर्धूम दीया रोशनी की जला के।
सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह
मगर बांटने हर-पल तन्हाईयाँ
साथ चलता रहा चाँद मेरे सफ़र में।
कभी मुख पे डाले घटाओं के घूँघट
कभी बादलों के झरोखों से झांके
कभी सुख की लाली का आलम लिए
दर्द की मांग भर जाये चुपके से आके।
कभी वैरागि मन की पगडंडियों पर
तृषित अंजलि का अमृत जल पिला के
कभी फायदा भोलेपन का उठाता
लुका-छिपी कर छलता रहा आते-जाते।
कभी सोई अनुभूतियों को जगाता
कभी थम सा जाता पराजय पर आके
कभी झकझोर कर गुदगुदाता हँसाता
इक निर्धूम दीया रोशनी की जला के।
सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह