तमस मिटाऐं अंतर्मन का

कहाँ दीपक की दीपशिखा में दंभ तनिक भी बोलो तो कहाँ दीपक के प्रज्वलन में है अहं तनिक भी बोलो तो , पर्व ज्योति का आया दीप बाल करें सिंगार तिमिर का अन्तर्मन के तज विकार आओ करें सिंगार तिमिर का , मावस की काली रजनी जगमग वर्तिका की ज्योति से आलस्य,कुंठा,भय,निद्रा मिटे दीप की अमर ज्योति से , चेतना का द्वार खोलता माटी का दीप जला अपना तन अज्ञानता का तिमिर मिटाता दीप लुटा कर अपना धन , आकाश जुगनूओं से जगमग दीपों से झिलमिल धरती साहित्य ,कला,संस्कृति ,ज्ञान दीपशिखा उरों में भरती , निज की आहुति दे नित दीपक पथ आलोकित करता स्वर्ण शिखा सी ज्योति बिखेर संसार सम्मोहित करता , दीप जलाएं शिक्षा का मानवता का ऊर्जा भाईचारे का नेह के घृत में चेतना की बाती तम मिटाऐं अंतर्मन का , अन्तर्मन की भावनाएं,संवेदनाएं प्रज्वलित करें प्रकाश अभिव्यंजना दीप की तब सार्थक जब हिय भरें उजास , हमारी संस्कृति के रंग-रंग रचा-बस...