देशद्रोहियों की मति गई है मारी का
देशद्रोहियों की मति गई है मारी का जहाँ सुबह होती अजान से कान गूंजे हनुमान चालीसा जिस धरती पे राम-रहीम बसते गुरु गोविन्द और ईसा जहाँ हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई में भाई-भाई का नाता जहाँ की पवित्र आयतें बाईबिल ग्रन्थ कुरान और गीता , हम करते हैं नाज़ जिस वतन की नीर,समीर माटी पर हम करते हैं नाज़ जिस चमन की खुशबूदार घाटी पर जिसकी आन वास्ते शहीद हुए न जाने कितने नौजवाँ उस मुल्क़ के मुखालफ़त गद्दार हुए बदजात बद्जुबां , पतित पावनी धरा पर भूचाल मचाया उपद्रवी तत्वों ने अभिव्यक्ति की आज़ादी में पाजी अक़्ल लगी सनकने भारत के टुकड़े होंगे कहते हैं कश्मीर नहीं भारत का बेलगाम नामुराद देशद्रोहियों की मति गई है मारी का , इक दिन बिखर जायेंगे अभिव्यक्ति की आज़ादी वाले दहर में देखना टूटे हुए जंजीर की कड़ियों की तरह उठेंगी दश्त में घृणा भरी निग़ाहें ब...