बारिश पर कवि " सावन आकुल है जल आचमन के लिए "
बारिश पर कविता सावन आकुल है जल आचमन के लिए ओढ़ लो ना श्वेत अम्बर घटा की चूनर वसुधा प्यासी है दो बूंद जल के लिए उमड़-घुमड़ मेघ करते तुम आवारगी क्यों छलकते नहीं एक पल के लिए । नभ निहारता है चातक बड़ी आस से तृषा से उदासी कोकिल का कण्ठ है जलचर तड़फड़ा रहे सूखे ताल,तरनी सुस्त नृत्यांगना शिखावल का पंख है । कहाँ गड़-गड़ गरज कर चले जाते हो छल जाये कड़कती-चमकती दामिनी कभी होता ग़र आसार श्याम मेघ का मन को हर धार लेते वसन आसमानी । आज फिर आई याद बचपन की घड़ी वही कागज़ की डोंगी ले आँगन खड़ी किस विरह में तुम तल्लीन घन बैरागी वेदना तो बताते बरसा नयन की झड़ी । धरती सिंगार करने को उतावली बहुत आतुर क्यारी में अन्न अंकुरित होने को मेघ बिन लगे फीका मल्हार सावन का कातर मानुष हैं खिन्न प्रमुदित होने को । पगली पूरवा बहे तप्त,देह तवा सी तपे तोड़ दो ना बांध अब्र का सभी मेघ जी आर्द्र कर दो ना...