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छोड़ दो तसव्वुर में मुझको सताना

छोड़ दो तसव्वुर में मुझको सताना  तबस्सुम के  जेवरात ग़ म को   पेन्हाकर अश्क़ से  याद के  वृक्ष  ख़िज़ां में हरा कर डाली खिलखिलाने की आदत तुम्हारे लिए। सील अधर तमन्नाओं  को  दफ़न कर ख़्वाब दिल  के कफ़स में जतन कर  डाली दिल बहलाने की आदत तुम्हारे लिए।  भर दृग की दरिया अश्क़ों का समंदर   सितम  सहे  इश्क़ में  चले जितने ख़ंजर डाली जख़्म भुलाने की आदत तुम्हारे लिए।  जब भी घुली मन  तेरे  लिए कड़वाहट  भींगो दीं हसीं लम्हों के नूर की तरावट डाली मर्म समझाने की आदत तुम्हारे लिए। दिल की सल्तनत ही,की नाम जिनके  वो ही दे गये मिल्यक़ित तमाम ग़म के डाली दर्द सहलाने की आदत तुम्हारे लिए।  क़सक हिज्र के रात की  तुम  न  जाने ले गए मीठी नींद भी प्यार के बहाने डाली रात महकाने की आदत तुम्हारे लिए। ना कोई अर्जे तमन्ना ना पैग़ामे-अमल सीखा तरन्नुम में  दर्द  पिराने का शग़...

शब्दों के अभाव पर कविता

शब्दों के अभाव पर कविता शब्दों बिन बेजुबां वाक्य हैं रचना रखूं किस शिलान्यास पर  अस्मर्थ,बेजान पंक्तिबद्ध कतारें मौन शब्दों के उपहास पर , क्षत-विक्षत हो शब्द शांत हैं   भाव दिग्भ्रमित वनवास पर  अवचेतन की प्रसव वेदना    सही न जाये ,कलम  उपवास पर , गीतों के बोल ठूंठ पड़े  अधरों के कैनवास पर शीतल से अहसास बन्दी जैसे  कल्पनाओं के आवास पर , अक्षर-अक्षर दुलराया  अभिव्यक्ति के विभास पर काव्य के अवयव गण सभी  रस,छंद,अलंकार हैं अवकाश पर , सुप्त पड़ी लेखनी की वाणी  मसि,कागज गये सन्यास पर घोलूं किसमें कल्पना का लालित्य   टूटन, मिलन, वियोग  के परिहास पर , करूँ प्राण-प्रतिष्ठा भावदशा  की  किन शब्दों,बिम्बों के मधुमास पर  शब्द हो गए विलुप्त या विस्थापित  या गये शब्द विधान के अभ्यास पर , कैसे गूंथूं  मन का अवसाद  शब्दाभाव में  किस विश्वाश पर किन श ब्द कलेवरों मे...