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लघु कवितायेँ

             लघु कवितायें  आज मुद्दतों बाद उनसे हुआ सामना उनसे नजरें मिलीं और फिर झुक गईं फिर पहले सी हुई मन में वही गुदगुदी  बंद पंखुड़ियाँ उल्लसित फिर खुल गईं । मुस्कुराऊं,खिलखिलाऊं बाग़ के कलियों सी  तुम ख़ूबसूरत ग़ज़ल,शायरी लिखना मुझ पर काश तुम बनो ज़िस्म मेरा बसे जां तुझमें मेरी उर के कैनवास ऐसे चित्र उकेरना रंग भरकर ।  कब बरसोगी मेघा झमाझम मेरे इस शहर में बारिश की फुहारों में भींगने को जी चाहता है झूम कर बरसो हठ छोड़ो ओ सावन की रानी  मन-वदन बौछारों से सींचने को जी चाहता है । तुम सूरज बनके चमको अग़र तो मैं भी गुनगुनी धूप बन जाऊंगी देख लो प्यार से जो मुझे भर इक नज़र  तो मैं भी ज्योति तेरे नयनों की बन जाऊंगी मुस्कान ग़र बिखेर दो जो मेरे मरू अधरों पर  प्रीत की ओस से तृषित उर तेरा तर कर जाऊंगी ।  मेरे ख़्यालों,ख़्वाबों में ऐसे तो तुम रोज आते हो मगर सामने आने से इतना क्यों हिचकिचाते हो मुझे दरियाफ़्त है हाल उधर भी इधर जैसे ही है मगर ख़ामोशी के आवरण में ये सब छिपाते हो  अधू...

लघु कवितायेँ

           लघु कवितायेँ  उतावली सी बावली आँखें विकल  ना जाने क्या ढूंढतीं हैं चारों तरफ़ ।  तूं ही मेरा श्रृंगार तूं ही मेरे रूप-रंग का नूर तुझी से मेरी दुनिया तूं जीवन का कोहिनूर।   किसपे नज़रें इनायत करें प्यार से कोई दिखता नहीं तुम सा शहर में देखा लम्बे सफ़र में बहुत दूर तक कोई दिखता नहीं तुम सा दहर में । कभी हम भी हसीं थे जवां थे कभी हम मग़र उम्र ने हमसे धोखा किया कभी रस्क करता था अंजन नयन में   मग़र आँखों ने हमसे धोखा किया । नहीं करती उसकी बेरूखी की परवाह मैं पास हजारों इंतजामात हैं दिल बहलाने के उसे पसन्द घर में छितरी खामोशी तन्हाई मेरे मुरादों की ज़िद चलना साथ ज़माने के । यह घर प्रिये तुम्हारा आजा तुझे बुला रहा है बड़ी हसरत से तेरे लिए फ़ानूस सजा रहा है तेरे लिए ही खुला रखा है दिल का दरवाजा  शिद्दत से राह ताके तेरा रास्ता निहार रहा है। मृगनयनी जैसे हों नयन  हिरनी जैसी चाल अनारदाना से दांत हो तोते जैसी सुतवां नाक  कमर कइन सी बलखाती लहराती नागिन से बाल होंठ ...

" हनक बर्दाश्त नहीं होती अब सूरज के हण्टर की "

हनक बर्दाश्त नहीं होती अब सूरज के हण्टर की बेचैन सभी चराचर हैं,चौपाये,बनजारे हैं बदहाल तपन दरका रही धरती उमस से जां है खस्तेहाल सुन धरा का अनुनय भी तरस आता नहीं तुझको दहकना छोड़के सूरज जगत का देखो सुरतेहाल । सुबह से ही चढ़ाए पारा वदन झुलसा रहे हो तुम तर-तर तन से चूवे पसीना अकड़ क्यूँ रहे हो तुम फसलें सभी हुईं चौपट विरां-वीरां निरा खलिहान घटा दुबक बैठी अंबर में हे इंद्रदेव करो कल्याण । सूखा ताल,पोखर,कुंआ गागरें रीती-रीती घर की जल संकट बहुत भारी सुनले बादल जरा हर की बड़ी आशा से नभ ताकता माथे हाथ धरे किसान हनक बर्दाश्त नहीं होती अब सूरज के हण्टर की । मुख म्लान निष्प्राण काया अश्रु से भरे नयन देखो सुनो गुहार तितर की पपिहा की पिऊ रटन देखो मरूधर प्यासी परदेशी रंगरसिया बन कर आजा नन्हीं बूँदों का टिप-टिप  सुना सरगम श्रवण देखो । ना कोयलें कूंकतीं वृक्षों पे,ना नाचते मोर बागों में तरकश ताने कर्कश धूप ना खेलते भौंरे फूलों में पीले पात दरख़्त सूखा  क़हर कुदरत का भीषण बरस श्यामल घटा,गू...