लघु कवितायेँ
लघु कवितायें आज मुद्दतों बाद उनसे हुआ सामना उनसे नजरें मिलीं और फिर झुक गईं फिर पहले सी हुई मन में वही गुदगुदी बंद पंखुड़ियाँ उल्लसित फिर खुल गईं । मुस्कुराऊं,खिलखिलाऊं बाग़ के कलियों सी तुम ख़ूबसूरत ग़ज़ल,शायरी लिखना मुझ पर काश तुम बनो ज़िस्म मेरा बसे जां तुझमें मेरी उर के कैनवास ऐसे चित्र उकेरना रंग भरकर । कब बरसोगी मेघा झमाझम मेरे इस शहर में बारिश की फुहारों में भींगने को जी चाहता है झूम कर बरसो हठ छोड़ो ओ सावन की रानी मन-वदन बौछारों से सींचने को जी चाहता है । तुम सूरज बनके चमको अग़र तो मैं भी गुनगुनी धूप बन जाऊंगी देख लो प्यार से जो मुझे भर इक नज़र तो मैं भी ज्योति तेरे नयनों की बन जाऊंगी मुस्कान ग़र बिखेर दो जो मेरे मरू अधरों पर प्रीत की ओस से तृषित उर तेरा तर कर जाऊंगी । मेरे ख़्यालों,ख़्वाबों में ऐसे तो तुम रोज आते हो मगर सामने आने से इतना क्यों हिचकिचाते हो मुझे दरियाफ़्त है हाल उधर भी इधर जैसे ही है मगर ख़ामोशी के आवरण में ये सब छिपाते हो अधू...