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सितंबर 1, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

दिल्ली,बाम्बे के रेप काण्ड और हालात पर 

दिल्ली,बाम्बे के रेप काण्ड और हालात पर           नारी जागृति के लिए  कर इतनी बुलंद आवाज कि घूंट अपमान का अंगार बरसाये सहनशक्ति सीमा तोड़ दे दुर्गा का विकराल अवतार अपनाये डरा बगावती मुहिम से, विभत्स व्यभिचार  वाकया ना दुहराये दूषित सोच का मिटे तमस,अस्तित्व की आ हम ज्योति जलायें  ऐसे कामान्ध पुरुषत्व पर धिक्कार जो काबू में ना रखा जाये किसी रक्षक का ऐसा हश्र हो दुबारा कभी सोचा ना ये जाये इतना क्षत-विक्षत करो अंग कि दुस्साहस तार-तार हो जाये बेमिसाल तस्वीर करो पेश ऐसी जग सारा शर्मसार हो जाये दिखा अंतर्द्वंद की वहशत ताकि दरिंदों को आगाज़ हो जाये  कि क्या हस्ती हमारी भी संसार में  अजूबा अन्दाज़ छा जाये, क्यूँ अग्नि परीक्षा दें हमीं क्यों चीरहरण हमारा हो सरे राह में हम अल्पवसना हों या पर्दानशीं या चलती अकेली हों राह में युवती,किशोरी,बालिका या प्रौढ़ा कहीं हों तनहा रात स्याह में कोई भी कौन होते है सीमाएं खींचने वाले हमारे हसीं चाह में ऐसा करो कि पाबन्द मीनारों की टूट...

भौतिकता की आँधी

भौतिकता की आँधी  हँसी अनमोल तोहफ़ा कुदरत का  हर शख्श हँसना,हँसाना भूल गया है  मौजूदा दौर ले जा रहा रसातल                        मशरूफ़ ज़िंदगी में हर कोई   कहकहा लगाना भूल गया है।  रफ़्तार ज़िन्दगी की तेज हो गई  दिल्लगी लब्ज ही भूल गए सब  जिंदादिल लोग नहीं मिलते अब  प्रेम,नेह की ऊष्मा उजास में भी  अजीब सा कुम्हलापन आ गया है।  हाथ -हाथ की शान बनी अब  हर हाथ में खेल रही मोबाईल  कर से कलम जुदा कर दी है  हर कान के पट इठला ठाठ से नाच-नाच कर झूल रही स्टाईल।   ख़त के सुन्दर भाव हजम कर  हर हर्फ़ निगल करती स्माईल  शह मात का खेल , खेल रही  कंप्यूटर की फटाफट अब तो  धड़ाधड़ देखो फाईल फर्टाईल।  भौतिकता की चकाचौंध में क्या  जीवन का फ़लसफा मालूम नहीं  दुरुस्त सेहत ,कामयाब राह की  मुकम्मल हमराज,ठहाका क्यों आज हर तबका ही भूल गय...