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सितंबर 25, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

'' क्रन्तिकारी कविता '' शत-शत नमन तुम्हें महानायकों

क्रन्तिकारी कविता  शत-शत नमन तुम्हें महानायकों ये वानगी तो एक चेतावनी थी सिंधु जल पर जल्द फैसला लेंगे हम , दिल आज ख़ुशी से पागल है मन रही देश में गली-गली दीवाली   शहर-नगर फूटे धांय-धांय पटाखे मिष्ठानों से घर-घर सज गई थाली , इंतक़ाम ले लिया उरी की घटना ने मातमी चेहरों पर फैली ख़ुशहाली बहादुरों ने ऐसा साहसी रंग बिखेरा अबीर गुलाल उड़ा होली पर्व मना ली , शत-शत नमन तुम्हें महानायकों रच दी एल ओ सी पे नई कहानी प्रण किया था खाकर माँ की कसम सेनाओं की व्यर्थ ना जाने दी क़ुरबानी , तेवर ने एक-एक शहादत के बदले  दस-दस जां लेने की बात कही थी बता दो नहीं पूरा हुआ मिशन अभी पीठ पर हमने घात की वार सही थी आज कलेज़े को मिली है ठण्डक उरी का मुँहतोड़ जवाब दे देने पर घर में घुस वीरों ने जो अंजाम दिया अब नहीं मलाल सुपुत्रों के खोने पर तेरे शौर्य का अद्द्भुत परचम देख हल्दीघाटी का भी सीना फूल गया परमाणु बमो की धमकी देने वाला शिकश्त खा लाशें गिनना ...

'' क्रन्तिकारी कविता '' शमशीरें मचल रही हैं चोलों में

उरी हमले पर मेरी लेखनी द्वारा बिफ़रती हुई यह दूसरी कविता है ,उरी के शहीदों को समर्पित मेरी इस वीर रस की कविता की एक वानगी --- शमशीरें मचल रही हैं चोलों में प्रस्तावना से लेकर उपसंहार तक ऐ पाकिस्तान तेरी बर्बादी का पटकथा,कहानी लिख ली भूमिका ध्वस्त करना ढाँचा तेरी आबादी का ,   कितनी बार फेंकी है तूने लुत्ती हमारे अमन चैन के उपवन  में कितनी बार तूने भड़काए शोले हमारे जन-मन के शान्त सदन में , विकराल हवा संग मिल चिन्गारी तेरी चमड़ी पर ऐसा क़हर ढहाएगी अब अंगारों को चैन तभी मिलेगा,जब  नमक-मिर्च का खाल पे छौंङ्क लगाएगी , अनगिनत नासूर दिए हैं तुमने अब ये उफान नहीं है रुकने वाला लालकिले की रणभेरी ने हुंहकार कर  अब खोल दिया है चुप का ताला  , दरियायें भी अब समंदर बन कर व्याकुल हैं पाक तेरी तबाही को आँसुओं की छछनाईं नदियां आकुल हैं तेरी भीषण बरबादी को , क्यों तेरी अम्मियाँ बस पैदा करतीं तुझे आतंक,ज़िहाद में झोंकने को क्यों शिक्षा,संस्कार,चलन को देतीं चोला आत्मघाती,फ़िदाईन का...

'' क्रन्तिकारी कविता ' रण में विजय केतु फहराने पर

'' क्रन्तिकारी कविता ' रण में विजय केतु फहराने पर ये आक्रोश भरे शब्द लिखे हैं आँख के पानी से रोष है उड़ी में हुए अट्ठारह वीर जवानों की कुर्बानी से , रण हुंकार से भरी शेरों की शमशीरें दहक रही हैं बिफ़र रहीं तलवारें भी भुजायें-भुजायें फड़क रही हैं हर वजूद के रक़्त प्रवाह से सिंह सी गर्जनायें भड़क रही है विकराल तूफान की लहरें  पाक तुझे लीलने के लिए ललक रही हैं हम आस्मा को धरा पर झुका लेने की ताक़त रखते हैं तोड़ पर्वतों का गुमां गंगा बहा लेने की हिमाक़त रखते हैं हमारी एक ही हुंकार जला के ख़ाक कर देगी पाकिस्तान को हमारे हिन्दुस्तानी स्वेद में दुनिया बहा ले जाने का दुःसाहस रखते हैं माँ मलिन मन मत करना वीर पूत के शीश कटाने पर गर्व से सीना तान के रखना रण में विजय केतु फहराने पर धरा का शीश नहीं झुकने देंगे अरि भी नत मस्तक करेगा अब रण बांकुरों के कर में  देख खंग   माँ देखना विश्व भी काँप उठेगा अब बांध शहादत का सेहरा माँ ग़र वीरगति भी हो जाये मातृभूमि की रक्षा ख़ातिर माँ मेरा नाम अमर ग़र हो जाये धन्य मानूँगा ये जीवन,धरती ऋण से प्राण उऋण ग़र हो जाए सौभाग्यशाली वो दिन...