आज की परिस्थिति पर कविता
क्या कहें कैसा हो गया है आलम
कितना लाचार कर दिया व्याधि ने
नीरस विरक्तता छाई है हर तरफ
घुट रहा है दम अब तो सन्नाटों से
प्रचण्ड स्तब्धता छाई है हर तरफ ।
न कोई किसी की ख़ैरियत पूछता
ना तो किसी का दर्दे हाल जानना
ख़ुद से ही हो गए हैं सब अजनवी
ख़ुद से ही हो गए हैं सब अजनवी
ना कोई चाहे किसी से हो सामना ।
कितना लाचार कर दिया व्याधि ने
आपसी सौहार्द मेलजोल ही खतम
फिर कब आएंगे दिन लौट सुनहरे
कब नई भोर का प्राची से आगमन ।
है फन काढ़े खौफ़नाक भयावहता
लगता जैसे हवाएं विषैली हो गईं हैं
सर्वत्र करते परिभ्रमण यमदूत जैसे
उचट ज़िन्दगी भी कसैली हो गई है ।
सजना -संवरना पहनना- ओढ़ना
लगे सबपे कोरोना का ग्रहण भारी
घूमने टहलने पे भी लगीं पाबंदियां
पूरे विश्व में कोविद का क़हर जारी ।
पूरे विश्व में कोविद का क़हर जारी ।
घर भी मुद्दत से मेरे ना आया कोई
नाकारा लगे घर का साजो सामान
नाता सबसे तुड़ा दिये नाशपीटी ने
नाता सबसे तुड़ा दिये नाशपीटी ने
क्या इससे निपटने का हो अनुष्ठान ।
वर्षों पीछे ढकेल दिया महामारी ने
निठल्ला बैठे भी क्षति हुई वक्त की
कई सपनों की टूटीं बिखरीं मीनारें
युक्ति सूझे न इस मर्ज़ से मुक्ति की ।
जब घर से निकलें मुँह झाबा लगा
जानवर से भी बदतर हुई ज़िन्दगी
कब उन्मुक्त विचरेंगे समग्र जहान
हो सामान्य परिस्थिति करूं बंदगी ।
उत्तरोत्तर दिनोंदिन संक्रमण वृद्धि
कारावास जैसे हालात हुए जा रहे
बंद पर्यटन स्थल मंदिरों के कपाट
देवी देवता भी प्रताप घटाते जा रहे ।
सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह