देश पर कविता कहीं दुर्गन्ध नाक में दम ना कर दे
देश पर कविता कहीं दुर्गन्ध नाक में दम ना कर दे उर्दू है तहज़ीब वतन की हिन्दुस्तान का हिन्दी है श्रृंगार सांस्कृतिक सभ्यता संस्कृति है बाईबल,गीता,ग्रन्थ,कुरान हैं हार, हिंदुस्तान की न्यारी धरती हमारी जहाँ भाई-चारा आपस में सौहार्द्र जहाँ भिन्न बोलियां,वेश भूषा भाषाएं विभिन्न धर्मों के समावेश का प्यार , जहाँ इबादत,प्रार्थनायें गुरु ईसा के साथ जहाँ भोर अजान की,गूंजे चालीसा का पाठ जिस सभ्यता ने विश्व को दिखाया आईना उस मुल्क़ को सेंध लगा दुश्मन रहा है बाँट , भारत माँ के विस्तृत आँचल को आज सियासत की गन्दगी ने दूषित कर डाला छल,छद्म का बिछाकर जाल चौमुखी जनमानस की आत्मायें कुत्सित कर डाला , भारतीय मूल्यों को ताक़ पर रखकर कुछ लोग देख रहे मुल्क़ का चीरहरण करते किस आजादी की मांग ये देशद्रोही ज़मीर बेंच देश का चाह रहे हैं विध्वंसकरण, जागरुक होना है दुष्परिणाम से पहले...