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हिंदी नहीं तो हिंदुस्तान कैसा

हिंदी नहीं तो हिंदुस्तान कैसा जब दूर होगी हमसे,हिंदुस्तान से हिंदी फिर अंग्रेज़ी के साथ हमारा क्या होगा गंगा,जमुनी  तहज़ीब संस्कृति, सभ्यता हमारे सनातन,धर्म का आगे क्या होगा , अंग्रेजी को आबाद कर चन्द हिमायती राष्ट्रभाषा का अनादर  कितना  करते हैं हमारी सांस्कृतिक विरासतों के गढ़ में   इसी अशिष्ट लिए उद्धत  इतना  रहते हैं , अंग्रेजों को  तो  खदेड़  दिया इस मुल्क़ से  ठाठ से ये अंग्रेजी  यहाँ  पोषित होती रही ग़फ़लत में हमारी इसी सौतन भाषा संग   सनातनी भाषा पग-पग शोषित होती रही, अंग्रेजी की वक़ालत करने वालों की बस      हिंदुस्तान में  मुश्किल से   मुट्ठी भर तादात  हिंदी करोड़ों भारतीयों के जुबां की रानी   कैसे करें  भला पराई भाषा हम बरदाश्त, रंग-ढंग   ना चाल-चलन,रत्ती भर तहज़ीब  ना छोटे-बड़ों  के  आदर-सम्मान का भाव  ख़ाक़ करेगी बेअदब मुकाबला हिंदी का जिसमें रखते देशप्रेमी   नहीं   जरा ...

'' हिन्दी दिवस पर '' हिन्दी आत्मा है हिंदुस्तान की

   हिंदी पखवाड़ा चल रहा है उस उपलक्ष्य में मेरे द्वारा लिखी यह कविता                       हिन्दी दिवस पर बस यही कहना है ---                        '' हिन्दी आत्मा है हिंदुस्तान की                           इसे हृदय से सभी लोग अपनाएं                           इससे अच्छी भाषा न कोई जहान की                           हम भारतीय इसे जेहन में ज़िंदगी में उतारें '' हिन्दी धड़कन,मेरुदण्ड,सांस है शिरोमणि  अखण्ड  हिंदुस्तान की हर माने में समर्थवान वृहत कोषों का भण्डार हिंदी हिंदुस्तान की, स्वर,व्यंजन,छन्दों से सुशोभित सुघड़,सलोनी हिदी हिंदुस्तान की भव्य,सरल,सहज,सुबोध,अलंकारयुक्त शुचि...

हिंदी दिवस पर कविता

हिंदी दिवस पर कविता  रफ्ता-रफ्ता सेंध लगा अंग्रेजी घर  में हिन्दी  के हुई  सयानी मेहमाननवाजी में खाई धोखा अपने  ही  घर  में हुई  बेगानी।        जड़ तक दिलो दिमाग पर छाई        चट कर दी  भावों भरा खजाना        बेअदब हर कोने ठाठ बघारती        राष्ट्र भाषा हिन्दी भरती हर्जाना। कितनी ढीठ है  ये घाघ अंग्रेजी किस दुनिया से  परा कर आई हम पर  हावी  हो  ऐसे  फिरती घर  में  हिंदी  की  बनी  लुगाई।       वक़्त की मार में हो गयी बीमार       अंग्रेजी महामारी ने पाँव  पसारा       आलम आज कि सांसें गिन-गिन       हिन्दी ख़ुद की देहरी करे गुजारा। मदर्स ,टीचर्स ,फादर्स ,फ्रैंड्स डे चलन फलां ,ढेंका के बढ़ चढ़ के इठलाती बोले साथ  खेले अंग्रेजी घर में  हिंदी के सिर चढ़-चढ़  के।        हिंदी दिवस का दे एक निवाला ...

" आरम्भिक प्यार का आकर्षण "

" मूक भाव प्रेम के बीज रोपे इस तरह " जो बातें मथें मेरे मन को, मन को तेरे आ लब की मेंड़ों पर भी कह ना सकें उसे कहने को जला लिए दीप नैनों ने  कह दिए उर की सब जो कह ना सके । कितनी जद्दोज़हद में रही व्याकुलता मौन सब दिए बता दिए नैन भी जता  प्रेम के बीज मूक भाव रोपे इस तरह जो अंकुरित हो रहे हमें तुम्हें भी पता । मेरे खोये-खोये मन का वजह हो तुम स्वप्न नैनों में बसा किये ग़ज़ब हो तुम यूँ लब की ख़ामोशियों से दो ना घुटन  करो प्यार प्रकट क्यूं नि:शबद हो तुम । नैनों के समन्दर से इतर बह हम चलें अधूरी प्रीत जो रीत में बदल हम चलें तैरें उर की नदी में करें संवाद लबों से  रात की बांहों में हों स्पर्श की हलचलें । जो मिज़ाज़ हो पसंद उसमें ढलूंगी मैं नयन में प्रदीप्त हो दीए सी जलूंगी मैं हिचकेंगी अधरों पर प्रेम की सुक्तियां हमसफ़र बन साथ साये सी चलूंगी मैं । जाने क्यूं नहीं नींद मुझे आती है इधर  सुना है जागते तो हो तुम भी रात भर इत्र सी ख़ुश्बू घोल हवा अहसासों की महका जाती तेरा घर औ मेरा घर भी...

कुछ क्षणिकाएँ

  कुछ क्षणिकाएँ   ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा यही बस मुस्कुराते जाईए ज़ब्त कर सीने में ग़म  अश्क़ आँखों का पीते जाईए ।          ठण्डी-ठण्डी हवा रात की आग़ोश में नींद के सुला गई सपने सजे सुहाने ज्यूं पलकों पर चहचहा भोर गुलाबी जगा गई ।             यादों मत भटकाओ रैना सारी भूली-बिसरी बीती यादों में गाकर लोरी मस्त सुलाओ भरो ख़ुमारी आँखों में । घूँघट के पट खोलो प्रिये दो नयन दीदार को तरसे महामौन जरा तोड़ो प्रिये अक्षयसंवाद अधर से बरसे।                ऐसा दीप जला रे मन जिसका असर दिखे चुहुंओर       जिस उजास के उजले तन पर चले ना अंधियारे का जोर ।               धीरे-धीरे कटते जा रहे सभी शजर हैं जंगल के जंगल  वीरान हुए जा रहे हैं उजाड़े जा रहे बसेरे निरीह परिंदों के हरे-भरे अरण्य श्मशान हुए जा रहे हैं,               ठंडी ठंडी हवाएं वदन चूमें कैसे लगी एसी कूलर में...