हिंदी नहीं तो हिंदुस्तान कैसा
राष्ट्रभाषा का अनादर कितना करते हैं
जिसमें रखते देशप्रेमी नहीं जरा भी चाव,
ना मैं जानूं रदीफ़ ,काफिया ना मात्राओं की गणना , पंत, निराला की भाँति ना छंद व्याकरण भाषा बंधना , मकसद बस इक कतार में शुचि सुन्दर भावों को गढ़ना , अंतस के बहुविधि फूल झरे हैं गहराई उद्गारों की पढ़ना । निश्छल ,अविरल ,रसधार बही कल-कल भावों की सरिता , अंतर की छलका दी गागर फिर उमड़ी लहरों सी कविता , प्रतिष्ठित कवियों की कतार में अवतरित ,अपरचित फूल हूँ , साहित्य पथ की सुधि पाठकों अंजानी अनदेखी धूल हूँ । सर्वाधिकार सुरक्षित ''शैल सिंह'' Copyright '' shailsingh ''
तेरी चाहतों ने तो संवरना सिखा दिया
सावन के मेंह सा बरसना सिखा दिया
तसव्वुर में तेरी भींगे असबाब सब मेरे
मेरे सांसों को भी महकना सिखा दिया ।
सरसी--सरोवर , असबाब--सामान
सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह
बड़े गुमान से उड़ान मेरी,विद्वेषी लोग आंके थे ढहा सके ना शतरंज के बिसात बुलंद से ईरादे ध्येय ने बदल दिया मुक़द्दर संघर्ष की स्याही से कद अंबर...