शनिवार, 30 जुलाई 2022

हिंदी नहीं तो हिंदुस्तान कैसा

हिंदी नहीं तो हिंदुस्तान कैसा


जब दूर होगी हमसे,हिंदुस्तान से हिंदी
फिर अंग्रेज़ी के साथ हमारा क्या होगा
गंगा,जमुनी  तहज़ीब संस्कृति, सभ्यता
हमारे सनातन,धर्म का आगे क्या होगा ,

अंग्रेजी को आबाद कर चन्द हिमायती
राष्ट्रभाषा का अनादर कितना करते हैं
हमारी सांस्कृतिक विरासतों के गढ़ में  
इसी अशिष्ट लिए उद्धत इतना रहते हैं ,

अंग्रेजों को तो खदेड़ दिया इस मुल्क़ से 
ठाठ से ये अंग्रेजी यहाँ पोषित होती रही
ग़फ़लत में हमारी इसी सौतन भाषा संग  
सनातनी भाषा पग-पग शोषित होती रही,

अंग्रेजी की वक़ालत करने वालों की बस     
हिंदुस्तान में मुश्किल से मुट्ठी भर तादात 
हिंदी करोड़ों भारतीयों के जुबां की रानी  
कैसे करें भला पराई भाषा हम बरदाश्त,

रंग-ढंग ना चाल-चलन,रत्ती भर तहज़ीब 
ना छोटे-बड़ों के आदर-सम्मान का भाव 
ख़ाक़ करेगी बेअदब मुकाबला हिंदी का
जिसमें रखते देशप्रेमी नहीं जरा भी चाव,

मानते हैं अवांछनीय नहीं है कोई भाषा
अनेक भाषाओं का ज्ञान बुरा नहीं होता  
राष्ट्रभाषा का हो अपमान इस ड्योढ़ी पे 
ये ससुरी आँख तेरेरे स्वीकार्य नहीं होता ,

हिंदी का प्रचार-प्रसार,पोषण संवर्धन कर 
मातृभाषा अर्श पे ला जगत को दर्शाना है  
भारतीय  संस्कृति के सनातनी प्रवाहों को 
भारतवासी कोटि-कोटि अक्षुण्ण बनाना है।

                                             शैल सिंह 

'' हिन्दी दिवस पर '' हिन्दी आत्मा है हिंदुस्तान की

   हिंदी पखवाड़ा चल रहा है उस उपलक्ष्य में मेरे द्वारा लिखी यह कविता
                      हिन्दी दिवस पर बस यही कहना है ---


                       '' हिन्दी आत्मा है हिंदुस्तान की
                          इसे हृदय से सभी लोग अपनाएं
                          इससे अच्छी भाषा न कोई जहान की
                          हम भारतीय इसे जेहन में ज़िंदगी में उतारें ''

हिन्दी धड़कन,मेरुदण्ड,सांस है शिरोमणि अखण्ड हिंदुस्तान की
हर माने में समर्थवान वृहत कोषों का भण्डार हिंदी हिंदुस्तान की,

स्वर,व्यंजन,छन्दों से सुशोभित सुघड़,सलोनी हिदी हिंदुस्तान की
भव्य,सरल,सहज,सुबोध,अलंकारयुक्त शुचि भाषा हिंदी ज्ञान की,

गीत रचे संगीत रचे परोसे रस,श्रृंगार में दुःख,दर्द कहानी,कविता
गजल,कलाम,शेरो-शायरी में कर देती अंतर की प्रवाहित सरिता,

खोल अतुल तिजोरी शब्द समन्वय की,अविरल रसधार बहाती है
बिंदी भाल लगाके,मलिका सौंदर्यबोध की,हिंदी अलख जगाती है,

गर्व से बोलो,शर्म करो मत राष्ट्रधर्म निभाओ भाषा स्वाभिमान की
सबसे उन्नत औ सुव्यस्थित,संसार की अग्रणी भाषा हिंदुस्तान की,

मर्यादित,सुस्पष्ट,प्रभावी मधुर भी कितनी जनहित के कल्याण की
संवादमुखी,पारदर्शी,सर्वसुलभ संग सर्वव्यापी हिंदी हिंदुस्तान की,

आचार-विचार,व्यवहार में घुलती हिंदी भाषा देश लिए उत्थान की
सर्वसमय सर्वत्र प्रयोग,है अभिव्यक्ति की मैत्री हिंदी हिंदुस्तान की,

शुद्ध परिष्कृत ओजस्वी,हिंदी की अकूत साहित्य सम्पदा,शान की
सहर्ष सुकीर्ति,ख्याति फैलायें राष्ट्रीय चेतना हिंदी आत्म सम्मान की,

चिरंतनकाल से देवों की वाणी सनातनी हिंदी है धर्म वेद पुराण की
रससिक्त,संस्कारवान,शालीन,सौम्य,मृदु भाषा हिंदी हिंदुस्तान की,

जिन्हें कदर नहीं अमृत भाषा की जो अज्ञान के अन्धकार में डूबे हैं
जिन्हें हिंदी महिमा का भान नहीं बोलने में संकोच करें वे अजूबे हैं,

हिंदी भावों की जननी,मीठी सरस,सुहावन जन-जन के जुबान की
हिन्दी समृद्ध,सौहार्द,सद्भाव की कड़ी यही विश्व गुरु अभियान की,

राष्ट्रभाषा है हिंदी हमारी सगर्व बोलो जय बोलो हिंदी हिंदुस्तान की
जोर से बोलो,मिलके बोलो,सारे बोलो हम हिन्दू हिंदी हिंदुस्तान की ।

                                                                 शैल सिंह

शुक्रवार, 29 जुलाई 2022

हिंदी दिवस पर कविता

हिंदी दिवस पर कविता 

रफ्ता-रफ्ता सेंध लगा अंग्रेजी
घर  में हिन्दी  के हुई  सयानी
मेहमाननवाजी में खाई धोखा
अपने  ही  घर  में हुई  बेगानी।

       जड़ तक दिलो दिमाग पर छाई
       चट कर दी  भावों भरा खजाना
       बेअदब हर कोने ठाठ बघारती
       राष्ट्र भाषा हिन्दी भरती हर्जाना।

कितनी ढीठ है  ये घाघ अंग्रेजी
किस दुनिया से  परा कर आई
हम पर  हावी  हो  ऐसे  फिरती
घर  में  हिंदी  की  बनी  लुगाई।

      वक़्त की मार में हो गयी बीमार
      अंग्रेजी महामारी ने पाँव  पसारा
      आलम आज कि सांसें गिन-गिन
      हिन्दी ख़ुद की देहरी करे गुजारा।

मदर्स ,टीचर्स ,फादर्स ,फ्रैंड्स डे
चलन फलां ,ढेंका के बढ़ चढ़ के
इठलाती बोले साथ  खेले अंग्रेजी
घर में  हिंदी के सिर चढ़-चढ़  के।

       हिंदी दिवस का दे एक निवाला 
       देश आजादी का विगुल बजाता
       राष्ट्र भाषा का कर घोर अनादर
       स्वदेशी  हिंदी को ठगा है जाता।

सुनने में लगता कितना अजीब
हिंदी दिवस मनाना  हिंदुस्तानी
दैवी  भाषा तज किस बिना पर 
अंग्रेजियत  फैशन मन में ठानी।

                                  शैल सिंह

" आरम्भिक प्यार का आकर्षण "

" मूक भाव प्रेम के बीज रोपे इस तरह "

जो बातें मथें मेरे मन को, मन को तेरे
आ लब की मेंड़ों पर भी कह ना सकें
उसे कहने को जला लिए दीप नैनों ने 
कह दिए उर की सब जो कह ना सके ।

कितनी जद्दोज़हद में रही व्याकुलता
मौन सब दिए बता दिए नैन भी जता 
प्रेम के बीज मूक भाव रोपे इस तरह
जो अंकुरित हो रहे हमें तुम्हें भी पता ।

मेरे खोये-खोये मन का वजह हो तुम
स्वप्न नैनों में बसा किये ग़ज़ब हो तुम
यूँ लब की ख़ामोशियों से दो ना घुटन 
करो प्यार प्रकट क्यूं नि:शबद हो तुम ।

नैनों के समन्दर से इतर बह हम चलें
अधूरी प्रीत जो रीत में बदल हम चलें
तैरें उर की नदी में करें संवाद लबों से 
रात की बांहों में हों स्पर्श की हलचलें ।

जो मिज़ाज़ हो पसंद उसमें ढलूंगी मैं
नयन में प्रदीप्त हो दीए सी जलूंगी मैं
हिचकेंगी अधरों पर प्रेम की सुक्तियां
हमसफ़र बन साथ साये सी चलूंगी मैं ।

जाने क्यूं नहीं नींद मुझे आती है इधर 
सुना है जागते तो हो तुम भी रात भर
इत्र सी ख़ुश्बू घोल हवा अहसासों की
महका जाती तेरा घर औ मेरा घर भी  ।

तेरी चाहतों ने तो संवरना सिखा दिया
सावन के मेंह सा बरसना सिखा दिया
तसव्वुर में तेरी भींगे असबाब सब मेरे
मेरे सांसों को भी महकना सिखा दिया ।

नवविकसित प्रीत की कोंपलें ना कहीं
कुम्हला जाएं दब अंतर में ही ना कहीं
पारदर्शी,समर्पण,विश्वास,श्रेष्ठ तत्वों से
अव्यक्त उद्गारों को बो लें मन के मही ।

सरसी--सरोवर  , असबाब--सामान

 
               सर्वाधिकार सुरक्षित
                                 शैल सिंह

बुधवार, 27 जुलाई 2022

कुछ क्षणिकाएँ

  कुछ क्षणिकाएँ  


ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा यही
बस मुस्कुराते जाईए
ज़ब्त कर सीने में ग़म 
अश्क़ आँखों का पीते जाईए ।
        
ठण्डी-ठण्डी हवा रात की
आग़ोश में नींद के सुला गई
सपने सजे सुहाने ज्यूं पलकों पर
चहचहा भोर गुलाबी जगा गई ।
           
यादों मत भटकाओ रैना सारी
भूली-बिसरी बीती यादों में
गाकर लोरी मस्त सुलाओ
भरो ख़ुमारी आँखों में ।

घूँघट के पट खोलो प्रिये
दो नयन दीदार को तरसे
महामौन जरा तोड़ो प्रिये
अक्षयसंवाद अधर से बरसे। 
             
ऐसा दीप जला रे मन
जिसका असर दिखे चुहुंओर      
जिस उजास के उजले तन पर
चले ना अंधियारे का जोर ।  
           
धीरे-धीरे कटते जा रहे सभी शजर हैं
जंगल के जंगल  वीरान हुए जा रहे हैं
उजाड़े जा रहे बसेरे निरीह परिंदों के
हरे-भरे अरण्य श्मशान हुए जा रहे हैं,
             
ठंडी ठंडी हवाएं वदन चूमें कैसे
लगी एसी कूलर में रहने की लत जब बुरी
देखें कैसे नयन ये भोर गुलाबी सुबह की 
लगी देर से सोकर उठने की लत जब बुरी।
               
पास कुछ भी नहीं मेरे,सुनहरे ख़्वाब के सिवा
डरती हूँ चुरा न लें कहीं दुश्मन बुने ख़्वाब मेरे ।
                                                              
कौन महका गया है चमन मेरा फिर फूल से
किसने दीप से वीरां गुलशन चरागां किया है 
मेरी आँखों में ख़्वाब फिर है किसने सजाया  
आहिस्ता सांसों में घुल कर दीवाना किया है ।

मेरी हँसी और ख़ुशी से लोगों को गुरेज क्यूँ है
आख़िर लोगों को हँसी और ख़ुशी से परहेज क्यूँ है
मैंने कब रोका लोगों को ऐसे धन को अर्जित करने से
कि लोग विस्मय से देखते शैल बिंदासपन से लबरेज़ क्यूँ है ।
             
जब भी हुई शान्ति भंग,क्षीण हो गये उत्साह,
जब-जब हिम्मत हारी मैं,छोड़ गई समृद्धि साथ,
हौसले जलाये रखे मेरी तमन्नाओं का अक्षुण्ण दीया, 
कभी लक्ष्यों ने बुझने न दिया महत्वाकांक्षाओं का दीया । 

मुझे रोके ना कोई टोके मुझे
राह मन्जिल की बस आँखें देखतीं,
ये कंगन के बन्धन,अंजन नयन के
नहीं सिंगार की बेड़ियाँ रोक सकतीं,
चाहे जो भी पाबंदियां लगें पंख पर
हर जंज़ीरें,उड़ानें हौसलों की तोड़ देतीं ।

कभी-कभी सारी-सारी रात 
नींद नहीं आती है आँखों में 
नींद अघोरी भटकाती फिरती   
जाने किन-किन बातों में 
बचपन की अल्हड़ सुधियों का 
इक इक पन्ना उलट-पुलट
बैठ सिरहाने याद फक्क्ड़ी  
कर जाती प्रायः उथल-पुथल। 
               
आज मजबूर वक्त की हवाएं हुई हैं
क्यों बेवजह दोष दूं मैं जमाने को
जुदाई,तन्हाई बस दो घड़ी के लिए 
क्यों दूं हँसने,आजमाने जमाने को  
बिछड़ गया है मुझसे भले आज मेरा 
लौ जल रही आस की कल मिल जाने को ।
ऐसे आलम के भले ही हवाले हुए हैं 
मग़र वादों की फ़ेहरिस्त लम्बी निभाने को । 

शैल सिंह 



नव वर्ष मंगलमय हो

नव वर्ष मंगलमय हो  प्रकृति ने रचाया अद्भुत श्रृंगार बागों में बौर लिए टिकोरे का आकार, खेत खलिहान सुनहरे परिधान किये धारण  सेमल पुष्पों ने रं...