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जनवरी 3, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सन पन्द्रह ने दिया सन सोलह का उपहार

सन पन्द्रह ने दिया सन सोलह का उपहार हम नई ऊर्जा के साथ चलो नए साल का करें स्वागत सन पन्द्रह की दी सौग़ात का क्या लिया क्या दिया है इस गुजरे साल ने लिया भूलें,याद रखें क्या दिया नए साल में , गीले,शिकवे,मलाल,द्वेष,क्लेश,अहंकर का  नाश करें हम बुराईयों के हर अंतर्जाल का मिटा कर तूं और मैं का दर्प,संकल्प लेकर  फासले मन से मन के मिटा इंसानियत का   बेकस,बेसहारों को दें संबल सबल बाँह का आओ नयी ऊर्जा के साथ हम नए साल का करें स्वागत सन पन्द्रह की दी सौग़ात का । भरें प्रेम,सौहार्द्र के सागर से मन का गिलास ज़श्न की मस्ती में खोकर भींगें हम एक साथ पंथ,सम्प्रदाय पर फिर कोई सियासत ना हो इक दूजे के प्रति दिल कोई ख़िलाफ़त ना हो ख़ाहिश हर मौसम उलीचे शगुन का तोहफ़ा आओ नयी ऊर्जा के साथ हम नए साल का करें स्वागत सन पन्द्रह की दी सौग़ात का । आओ एक साथ वीणा उठायें भलाई का हम चलो मुस्करा के वादा निभाएं वफ़ाई का हम ख़िज़ाँ के दर्द का भी हम मिल करें आंकलन एकता की ख़ुश्बू से करें मह-मह...

मन इतना आर्द्र है की बस .... मत पूछिये

मन इतना आर्द्र है कि बस मत पूछिये पठानकोट में शहीद हुए वीर जवान जो उनकी श्रद्धांजलि में अभी शपथ लो हिन्द के नौजवानों डटकर इन्तक़ाम लेने का ये सिलसिला तभी थमेगा जब  घुसकर तुम भी पाकिस्तान में मुँहतोड़ जवाब दे ऐसा हश्र करोगे पापी निशाचरों के ख़ेमे का । जो मक्खी,मच्छर जैसे पैदा करती तादातों में वाहियात औलादें ना कोई तहज़ीब,संस्कार सीखातीं बस जनती रहतीं हरामज़ादे उन्हें कोई अफ़सोस फ़र्क़ नहीं गोजर की एक टांग टूट जाने का ग़र महसूसती वज्र का पहाड़ टूटना मलाल होता कुछ खोने का । पर तेरी बहना तो थाल सजा बैठी थी इकलौते भाई की राहों में मेंहदी रचे हाथ,भरी चूड़ियाँ जो सिंगार तब्दील हो गए आहों में हसरत से देखती रस्ता जिस माँ की आँखों में निर्झर आँसू उमड़े उस वीर सैनिक की शहादत पर लेने होंगे तुम्हें भी फैसले तगड़े ।                                                             ...

चर्चा सारे शहर में तेरे नाम का

जाने किसने शरारत में गुगली है की बदनाम करने पर तूला रिश्ता पाक का चर्चा सारे शहर में तेरे,मेरे नाम का , अभी आँखों में बस था बसाया तुझे दिल की किताबों में था छुपाया तुझे अभी पन्ने पलटकर भी देखा नहीं अभी अलकें ना खोलीं कहीं राज की तुझे पलकों की छत पर भी रखा नहीं जाने किसने फैलाया धुवाँ आग का चर्चा सारे शहर में तेरे,मेरे नाम का । बस शराफ़त के तेरे थे कलमें पढ़े तेरी चर्चा पे थे कुछ कसीदे काढ़े भींड में भी नज़र का तुझे ढूंढ़ना ज़िक्र पर तेरे,लब का महज़ खोलना धड़कनों की ग़दर ही खबर बन गई जाने किस गंध ने दी पता हाल का चर्चा सारे शहर में तेरे,मेरे नाम का । कोंपलों ने अभी पांख खोला ना था गुप्त तहखाने का राज डोला ना था लफ़्ज़ निर्लज्ज हो कुछ भी बोले ना थे ख़्वाबों के पांव बाँधी थीं पाज़ेब तरंगें थीं स्वप्न के माथ चूमीं निगोड़ी उमंगें जाने क्या हश्र होगा इस तूफ़ान का चर्चा सारे शहर में तेरे,मेरे नाम का । सुलगती चिलम सी सीने में अगन इश्क़ की आग तपता भट्ठी सा वदन क्या तुझको भी ऐसे ज्वर की ताप है तेरे दिल का भी द्वार...