जिन अधरों ने उनको पुचकारा
जिन अधरों ने उनको पुचकारा वज्र की छाती वाली धरती माँ सी औरत कितनी है बदक़िस्मत हाय मर्दों के हाथ का मात्र खिलौना बस , जिस माँ ने जनकर ऐ मर्द तुझे इक मर्द होने का है नाम दिया उसी का मान सम्मान मसलकर तुमने सरेआम है बदनाम किया , उस पुज्यनिया की लूट आबरू दर्पित हो तूने अभिमान किया चिथड़े-चिथड़े कर अस्मत के उसे सरेबाज़ार निलाम किया , तूमने जान कोख़ में कन्या भ्रूण इक माँ को बेवश मजबूर किया कचरे का ढेर समझ निरीहा को बिन जने ही अस्तित्व चूर किया , घर का चिराग़ इक मर्द ही हो ताकि मर्द बने बेग़ैरत तुझसा माँ,बहन,बेटी की अस्मत लुटे चील,कौव्वा,गिद्ध बन तुझसा , बाप,बेटा,भाई,का फ़र्ज भूलाकर मर्द तुमने दानवता का रूप धरा तुमने मानवता को शर्मसार कर विकृत सोच से मन का कूप भरा , ख़रीद-फ़रोख़्त में वही बिकी रे नंगी शोभा बनी दर-दरबारों की संसार के लिए वह वस्तु हो जैसे भोग की साधन इज्ज़तदारों की, पीर ज़ज्ब कर हर ज़ुल्म सहे वो हर ख़ता पर बस नाम उसी का मर्दों के सेज़ की कामुकता पर क्यूँ चिता सजे...