गिर-गिर संभल गया

गिर-गिर संभल गया


ओ मुझे रिन्द कहने वालों
मैंने तो सिर्फ शराब पी है
ख़ुद कि वाहयात नज़र देखो
जिसने छक के शबाब पी है ,

मैं तो समां का लुत्फ़ लेकर
गिर-गिर संभल गया
देख खुद नज़र की करामात
सरे-राह क्यूँ फिसल गया ,

थे अश्क़ मय में शामिल
सबने जाम का सुरूर देखा
मग़र इस खुमार में क्यों नहीं 
किसी ने मेरा कोहिनूर देखा ,

बहक कर नशे में मैं तो
कभी खोया नहीं था आपा
ना ढोंगी योगी बन किसी
नक़ाब डाला कभी था डाका ,

ग़म भूलाने के लिए मैं तो
तिल-तिल जल जा रहा हूँ
डर है कहीं जल ना जाए,जो
अमानत दिल में छुपा रहा हूँ ,

इक वो भी वक्त था नजर से
पीया,था जमाल उनका साक़ी
अब वो वो रहे ना हम हम रहे
रह गया मैं और गिलास बाकी ।

रिन्द --पियक्कड़
                                 शैल सिंह 

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