सोमवार, 28 अक्तूबर 2019

ग़ज़ल '' मिलना,बिछड़ना उल्फ़त का दस्तूर है ''

मिलना,बिछड़ना उल्फ़त का दस्तूर है 


आज की रात आलिंगन लगा लें सनम
कल ना जाने हसीन ये समां रहे ना रहे,

ख़ुशनुमा सी जो ये आज की रात है
क्षण भर की ही और ये मुलाकात है
जुदाई,मिलन चाहत में,बे-आसरा हैं
वफ़ा,बेवफ़ा की  सहूलियत कहाँ है
इश्क़ वालों की राहें दहर में जुदा हैं
हँस इंकार करो ना सुहानी फ़िज़ा है,

आज की रात  चाँदनी में नहा  लें सनम
कल ना जाने ये वक़्त मेहरबां रहे ना रहे ,

क्या पता था दुश्मन  जमाना बनेगा
प्यार हमारा तुम्हारा फसाना बनेगा
इश्क़ में होंगी खुशी संग मजबूरियां
सिमटी घड़ियाँ तक़ाजों की बेड़ियाँ
चाँद का कारवां तुरत गुजर जायेगा
कभी ठहरा कहाँ वक़्त छल जायेगा,

आज की रात मय अधर का पी लें सनम
कल ना जाने अधर ये मकरंंद रहे ना रहे,

यादों से सजाना सुहागरात यादों की
होंगी तहरीरों  से बातें  जज़बात की
कल्पनाओं में तस्वीर उभरती रहेगी
जुदाई तन्हाई में भी अखरती  रहेगी
शम्मा जलती  रहेगी अमर प्यार की
याद आएगी स्याह रात इन्तज़ार की,

आज की रात पर्दा हया का उठा लें सनम
कल ना जाने रुख़्सार की लाली रहे ना रहे ,

कितनी लाचार हैं आरजुवें दिलों की   
जग की जंजीरों में फैसले ज़िंदगी के
कल तक बेफ़िक्र थे प्रीत के छाँव में
प्यार के गांव तक हौसले ज़िन्दगी के
क्या पता था बेबसी में जलना पड़ेगा
ख़ाब की रहगुजर हाथ मलना पड़ेगा,

आज की रात आलिंगन में भर लें सनम
कल ना जाने ये रात गुलज़ार रहे ना रहे।

रेशमी सी रातें खिला चाँद आसमा का 
गवाह है अनूठे चाहतों के एहसास का 
बिछड़ने से पहले हसीं पल ये प्यार का 
धरोहर सा सहेज लें ये लम्हा बहार का 
मिलना,बिछड़ना उल्फ़त का दस्तूर है
इक दूजे के दीवाने फिर भी मजबूर हैं,

आज की रात हसीं अंजुमन सजा लें सनम
कल ना जाने नज़ाकत ये तुममें रहे ना रहे।

सर्वाधिकार सुरक्षित
                     शैल सिंह




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