ग़ज़ल '' मिलना,बिछड़ना उल्फ़त का दस्तूर है ''
मिलना,बिछड़ना उल्फ़त का दस्तूर है आज की रात आलिंगन लगा लें सनम कल ना जाने हसीन ये समां रहे ना रहे, ख़ुशनुमा सी जो ये आज की रात है क्षण भर की ही और ये मुलाकात है जुदाई,मिलन चाहत में,बे-आसरा हैं वफ़ा,बेवफ़ा की सहूलियत कहाँ है इश्क़ वालों की राहें दहर में जुदा हैं हँस इंकार करो ना सुहानी फ़िज़ा है, आज की रात चाँदनी में नहा लें सनम कल ना जाने ये वक़्त मेहरबां रहे ना रहे , क्या पता था दुश्मन जमाना बनेगा प्यार हमारा तुम्हारा फसाना बनेगा इश्क़ में होंगी खुशी संग मजबूरियां सिमटी घड़ियाँ तक़ाजों की बेड़ियाँ चाँद का कारवां तुरत गुजर जायेगा कभी ठहरा कहाँ वक़्त छल जायेगा, आज की रात मय अधर का पी लें सनम कल ना जाने अधर ये मकरंंद रहे ना रहे, यादों से सजाना सुहागरात यादों की होंगी तहरीरों से बातें जज़बात की कल्पनाओं में तस्वीर उभरती रहेगी जुदाई तन्हाई में भी अखरती रहेगी शम्मा जलती रहेगी अमर प्यार की याद आएगी स्याह रात इन्तज़ार की, आज ...