ऐ कुदरत
केदारनाथ घाटी की तबाही पर ऐ कुदरत तेरी क़हर का मंज़र अज़ीब देखा लहरता तेरी तबाही का समंदर अज़ीब देखा जल प्रलय के उमड़ते सैलाबों में निग़ाहों ने भयावह तेरी बेदर्दी का बवंडर अज़ीब देखा । ऐ कुदरत तेरी तबाही का मंज़र अज़ीब देखा तेरी विनाशलीला का क्रूर क़हर अज़ीब देखा पल में जमींदोज नगर,खण्डहर अज़ीब देखा प्रचण्ड प्रलय का लहर नज़र से करीब देखा। तेरी चंचल क्रीड़ा में समाहित ज़िन्दगानियों का रेला तमाशबीन बना देखा मौत की आशनाईयों का मेला बेघर हुए अनाथ कितने आंकड़े दफ़न तेरी मौज़ों में सब कुछ गँवा कर लौटा घर बिलखता हुआ अकेला । सर्द हवायें,मुसलाधार बारिश का उफ़ ताण्डव नर्तन लाचार खड़ा देखा भंवर में उफ़ रुग्ण करूँण क्रन्दन उफनती जलधार में समाया धरा का वो हसीन जंगल ज़िंदगी मौत के दरमियान विवश उफ़ दर्दनाक रुदन । रौनक भरी वादी,पल में पलीदा शमशान बनते देखा सूखे पत्तों के मानिन्द भरभरा कर...