बचपन की उन्हीं गुफ़ाओं में
बचपन की उन्हीं गुफ़ाओं में तन्हाई के पहरों पर जब यादें देतीं हैं दस्तक बहती यादों की पुरवा में खो जाती हूँ हद तक, ओ अतीत की खूबसूरत तस्वीरों मत आया करो मेरी सुप्त शिराओं में वक़्त के आईने में ढल सकी ना भटकती हूँ बचपन की उन्हीं गुफ़ाओं में । खुल जाता खुशनुमा पिटारा बचपन की उन सँकरी गलियों का जहाँ न कोई आपाधापी,प्रतिस्पर्धा,ईर्ष्या होतीं बस होती अतीत कीअच्छी बुरी झलकियाँ , गिल्ली डंडा,कंचे और बाग़ की अमियाँ , घनघनाती घंटी सुन कुल्फी,बरफ बेचने वाले की , दौड़ पड़ना चोरी से धान,गेहूँ से भरकर डालियाँ , यादें पुरानी जब चित्र उकेरतीं मन की दरकती दीवारों पर , फिर तो जिवंत हो उठतीं बीते दौर की कितनी बातें , दौड़ती भागती जिंदगी की मीनारों पर , यादें नहीं देखतीं वक्त मुहूर्त, संरक्षित रखतीं यादों के सन्दूक में सारे सूत्र , डायरी के पन्नों पर लिखे इबारत, पत्रों की पोटली,कविताओं की कच्ची कड़ियाँ, सहेजे हुए फोटोग्राफ के सभी पुलिंदे जो भारी पड़ते आज के फेस बुक,जीमेल चैट पर भावों की भंग...