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जनवरी 17, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अब राखें चिंघाड़ेंगी क्या पस्त हो

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अब राखें चिंघाड़ेंगी क्या पस्त हो झुग्गी झोपड़ियों में आग लगने पर  एक छोटी सी लुत्ती हुई शोख़ इतनी हवा के शहर का पता पूछकर पस गई ठाठ से झुग्गियों के नगर खाक़ कर डाली सब वस्तियां गेलकर अब राखें चिंघाड़ेंगी क्या पस्त हो ख़त्म कर सब कहानी पवन खेलकर मातम पर चल दिया हँसता हुआ  क्रूर विध्वंस कर नाद से बेखबर खुद के षड्यन्त्र में लुत्ती स्वाहा हुई मिली संयोग की संज्ञा विनाश झेलकर कोई भी अरमां की लाशों का ढेर देखकर कुछ ना पूछा भभकों का छाला कुरेदकर । पस --घुसना  ,गेलकर --मज़ाक़ कर