बड़े गुमान से उड़ान मेरी,विद्वेषी लोग आंके थे ढहा सके ना शतरंज के बिसात बुलंद से ईरादे ध्येय ने बदल दिया मुक़द्दर संघर्ष की स्याही से कद अंबर का झुका दिया मैंने हौसलों के आगे । प्रयास दोहराने में हो लीं साहस विफलतायें भी विस्तृत भरोसों ने खींचीं कल्पनाओं की रंगोली असम्भव सी मिली जागीर जो है आज हाथों में बन्द अप्रत्याशित प्रतिफल से निंदकों की बोली । कंटीली झाड़ियों,वीहड़ रास्तों पे चलकर अथक बाधाओं को पराजित कर जीता जड़कर शतक खड़ी तूफां से लड़कर साहिल पे योद्वा की तरह ग़र लहरें करतीं अस्थिर कैसे पाते डरकर सदफ़ । पड़ाव ज़िंदगी में आया कितना उतार,चढ़ाव का खा-खा कर ठोकरें भी हम नायाब हीरा बन गये बहुत लोगों को परखी ज़िंदगी दे देकर इम्तिहान लोग समझे दौर खत्म मेरा देखो माहिरा बन गये । सदफ़--मोती , माहिरा--प्रतिभाशाली सर्वाधिकार सुरक्षित शैल सिंह
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सितंबर 10, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं