कुछ बंद
ना तो हीरे रतन की मैं खान मांगती हूँ
चाँद,तारे,सूरज ना आसमान मांगती हूँ
मेरे हिस्से की धूप का बस दे दे किला
जरुरत की जीस्त के सामान मांगती हूँ ।
फाड़कर ना दे छप्पर कि पागल हो जाऊँ
रूठकर ना दे मन का कि घायल हो जाऊँ
अपने दुवाओं की सारी कतरनें बख़्श देना
कि तेरी बंदगी की ख़ुदा मैं क़ायल हो जाऊँ ।
गुज़ारिश है आँखों में वो तदवीर बना देना
मेरी ख़्वाहिशों का मेरे तक़दीर बना देना
टूटकर कोई तारा फ़लक़ से दामन आ गिरे
मेरी बदा में वो ख़ूबसूरत तस्वीर बना देना ।
शैल सिंह
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