बुधवार, 8 अक्टूबर 2014

मैं तो ऐसी नगीना थी ऐ संग दिल तराशकर हीरे सा तुम निखारे तो होते


मैं तो ऐसी नगीना थी ऐ संग दिल
तराशकर हीरे सा तुम निखारे तो होते

आती अवरोधों की तोड़ जंजीरें सब
कभी आवाज़ दे तुम पुकारे तो होते ,
टूटे दिल की किरिचें संभाले है रखा
जोड़कर रेज़ों को तुम निहारे तो होते

मैं तो ऐसी नगीना थी ऐ संग दिल
तराशकर हीरे सा तुम निखारे तो होते ।

भोली मस्ती थी नादां से अहसास थे
नाज़-नखरे कभी तुम संवारे तो होते ,
मोम की गुड़िया सी मैं जाती पिघल
प्यार की आँच से तुम दुलारे तो होते ,

मैं तो ऐसी नगीना थी ऐ संग दिल
तराशकर हीरे सा तुम निखारे तो होते ।

छोटी-छोटी मेरे ख़्वाहिशों की मीनारें
मन समंदर उतर तुम विहारे तो होते ,
हद-ए-बेरूख़ी पर सब्र का बांध तोड़ा
गाल गीले कभी तुम पुचकारे तो होते ,

मैं तो ऐसी नगीना थी ऐ संग दिल
तराशकर हीरे सा तुम निखारे तो होते ।

भावों की बह नदी डूबी उतरायी मैं 
भावों की लहरों पर तुम उतारे तो होते ,
जग के ताने, छींटे, व्यंग्य,फिकरे सहे
तंज के झंझावात से तुम उबारे तो होते ,

मैं तो ऐसी नगीना थी ऐ संग दिल
तराशकर हीरे सा तुम निखारे तो होते ।

तुम ज़िद पर अड़े मैं अपनी उम्मीद पर
कशमकश की ढहा तुम दीवारें तो होते ,
आस की ज्योति आँखों में होठों पे नाम
आ कर दहलीज़ पाटे तुम दरारे तो होते ,

मैं तो ऐसी नगीना थी ऐ संग दिल
तराशकर हीरे सा तुम निखारे तो होते ।

फासले सब मिटा सुन सदा ज़िन्दगी की
दरमियां मुश्क़िलों के तुम सहारे तो होते ,
कभी प्रीत के हर्फ़ से नम व्यथा कंचुकी
दर ज़ज्बातों के आ तुम निथारे तो होते ,

मैं तो ऐसी नगीना थी ऐ संग दिल
तराशकर हीरे सा तुम निखारे तो होते ।

                                       शैल सिंह














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