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" अहसासों के विभिन्न रंग "

अहसासों के विभिन्न रंग  उड़ानों को पंख तो लगा है दिया हवा परवाज़ों को बना लो दुल्हन करें श्रृंगार ख़्वाहिशों की चोटियां  तोड़कर बंदिशों की सभी बेड़ियां . जब-जब हुए अकेले कह सके किसी से कुछ ना, जब-जब खली तन्हाई बोझिल लगा एकाकीपन, बेबाक कह दिया ग़म से आँखों से दोस्ती कर ले, आँसुओं के रस्ते बह कह तुझे जो है कहना  जज़्बातों को शब्दों की पहना दी झबरीली पोशाक, कलम को दे दी जुबान कह तुझे जो है कहना  हर्ष,विषाद,आनंद को अपनी चित्रलेखा बना, थमा दिया तूलिका को   अहसासों का विभिन्न रंग, कागज का विस्तृत कोरा कैनवास दे कह दिया, उकेर रंगों के अन्तर्जाल से मन के बवण्डरों का चित्र, मन के बोध के लिए तोड़ दिया बेबस बन्दिशों को, थकान,सुकून,चाहत,विश्राम की, विश्वास की,भरोसे की, संगी,साथी,मित्र बन गई गजल,गीत,रूबाई,कविता, कण्ठ को सुर,मधुर तान दे गुनगुना ली अकथ व्यथा, पा लिया हजारों लाखों सुख वसंती रूत जैसा आह्लाद, विषाद का क्रूर शिल्पी भी वक्त के हथौड़े से प्रहार करे,ग़म नहीं, भीतर का गीला सुखाने के अनेकों संसाधन हैं, मोहताज नहीं भावों...