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नज़्म ----

नज़्म --- अपनी नज़रों में कर लो महफूज़ मुझको  ताकि कर सको हर पल महसूस मुझको तुम्हारी नज़रों में रहके देखूं सुहाने नजारे ज़िन्दगी में रहूं हर पल साथ साथ तुम्हारे । खुशबु बन कर तेरी श्वासों में समां जाऊं तेरी सूरत में मैं ही मैं सबको नज़र आऊं तूं मेरा मुकद्दर  मैं तेरी मुकद्दर बन जाऊं दूर कितना भी रहूॅं तेरे पास नज़र आऊं । मुहब्बत के नशे में अगर हो गये बदनाम  आंखों के देखें ख़्वाब अगर हो गये आम ग़म नहीं जज़्बात का तोफ़ा देते ही रहेंगे मोहब्बत की तपिश कर दे भले सरेआम । अजनवी होके भी कितने करीब आ गये रूसवाई के चर्चे आज इस कदर भा गये तुझपे ऐतबार कर दाग दामन लगा लिये तुझपे यकीन कर गले तन्हाई लगा लिये । सर्वाधिकार सुरक्षित  शैल सिंह 

नज़्म ---

अपनी नज़रों में कर लो महफूज़ मुझको  ताकि कर सको हर पल महसूस मुझको तुम्हारी नज़रों में रहके देखूं सुहाने नजारे ज़िन्दगी में रहूं हर पल साथ साथ तुम्हारे । खुशबु बन कर तेरी श्वासों में समां जाऊं तेरी सूरत में मैं ही मैं सबको नज़र आऊं तूं मेरा मुकद्दर  मैं तेरी मुकद्दर बन जाऊं दूर कितना भी रहूॅं  तेरे पास नज़र आऊं । मुहब्बत के नशे में अगर हो गये बदनाम  आंखों के देखें ख़्वाब अगर हो गये आम ग़म नहीं जज़्बात का तोफ़ा देते ही रहेंगे मोहब्बत की तपिश कर दे भले सरेआम । अजनवी होके भी कितने करीब आ गये रूसवाई के चर्चे आज इस कदर भा गये तुझपे ऐतबार कर दाग दामन लगा लिये तुझपे यकीन कर गले तन्हाई लगा लिये । सर्वाधिकार सुरक्षित  शैल सिंह 

ये तनहाई

ये तनहाई -- सुबह तनहा शाम तनहा  तनहा ज़िन्दगी का हर लमहा  परछाईंयां भी अब डराने लगी हैं सुख चैन ज़िन्दगी का चुरानें लगी हैं  कैसे कटेगी ज़िन्दगी की बाकी उमर  तनहा-तनहा लगता आठों पहर ना जाने किसकी लग गई नज़र  नहीं तन्हाई का अब कोई हमसफ़र  अपने चारों तरफ तन्हाई का मेला भीड़ भरे शहर में भी फिरते अकेला  न महफ़िल न मयखाना ना कोई खेला न कोई संगी संम्बन्धी ना कोई चेला गुज़र रही ज़िन्दगी अकेला अकेला।  शैल सिंह 

ग़ज़ल----

 ग़ज़ल---- जो लफ़्ज़ों में बयां ना हो वो आॉंखों से समझ लेना कि करती हूँ मोहब्बत कितना तुमसे वो समझ लेना  मुझको दीवानगी की हद तक मुहब्बत हो गई तुमसे  मत कुछ पूछना जो कहें ख़ामोशियाँ वो समझ लेना । तेरी हर ज़िक्र पर हर शब्द का शायरी में ढल जाना  तुझसे बात करते वक़्त नज़र नीची करके शरमाना  बार-बार मेरी तरफ़ तेरा देखना मेरा यूं घबरा जाना  अनजाने ही फिर इक दूजे की निग़ाहों में खो जाना । मोहब्बत का सुरूर कैसा न जानते तुम न जानें हम  कितनी मुश्किल भरी राहें न जानते तुम न जानें हम चल पड़े बेफिक्र इस राह दहर ने जीना किया दुश्वार  कैसे नयनों ने किया शिकार न जाने तुम न जाने हम  । सर्वाधिकार सुरक्षित  शैल सिंह