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जनवरी 15, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

तुम कहाँ हो बोलते

सर्प दंश से भी बढ़ कर घातक तुम्हारा मौन है , तुम कहाँ हो बोलते बोलती तुम्हारी चुप्पियाँ हैं मौन की भाषा अबोली कह देतीं मन की सूक्तियां हैं , इतनी विधा के भाव समेटे अधर विराम चिन्ह क्यों हैं शब्दों को रखते मापकर स्वभाव इतना भिन्न क्यों है, क्या-क्या उधेड़ बुनकर दिन रात तुम हो जी रहे कौन सा ऐसा गरल जो मौन घोंट कर हो पी रहे, मौन तो हो तुम मगर बोलती देह की भित्तियां हैं किस खता पे सौगंध तुमको बन रही कड़वी पित्तियाँ हैं, किताब भर ब्यौरा समेटे क्यूँ रखते अधर के बंद पट अंदाज की चंठ झाँकियाँ झाँकतीं नैन के पनघट, जब कभी गर खोलते हो भानुमति का बंद पिटारा बस गोल मोल बोल करते चन्द सा अस्फुट निपटारा, जीने लिए इस किरदार को मजबूर क्यों हो बोल दो चुपचाप की इन खिड़कियों को भड़भड़ाकर खोल दो, मूल्यवान मेरे हजारों शब्द से मौन की कुपित दृष्टियां  हैं आत्मज्ञान की तुम खोज में मगर रहतीं तनी भृकुटियां हैं , वास्ता मुझसे अगर है मैं वजह हूँ मौन की तो ओ विरागी पूछती हूँ ढीठ बन मैं कौन हूँ, तुम बंद सीपी की तरह म...

देशभक्ति गीत

       एक देशभक्त सिपाही के उद्वेग का वर्णन गीत वद्ध कविता में , बाँधा सर पे कफ़न हम वतन के लिए जांनिसार करना मादरे चमन के लिए , मत प्रिये राह रोको कर दो ख़ुशी से विदा   भाल पर मातृ भूमि का रज-कण दो सजा दिल पे खंजर चलातीं हरकतें दुश्मनों की लेना सरहद पे बदला हर बलिदानियों का , है पिता का आशीष गर दुआ साथ माँ की प्रिये होगी विजय मुश्किले हर हालात की रखना इंतजार का दीया दिल में जलाकर सलामत रहा होगी बरसात   मुलाक़ात की , अश्कों के बाल दीप ना बुज़दिल बनाओ  ना कजरे की धार की ये बिजली गिराओ   पिघल न जाये कहीं मोम सा दिल ये मेरा  विघ्न के इस प्रलय की ना बदली बिछाओ , महबूब ये वतन तेरा वतन से प्यार करना  वतन की  आबरू लिए सुहाग  वार करना  माँग अपनी संवारो संकल्प के सामान से कंगना कुंकुम ना रोको न मनुहार करना , कायराना कमानों का न आयुद्ध जुटाओ  आरती के  था ल आज़...