हम ऐसे फूल हैं ख़िज़ाँ में महकेंगे ख़ुश्बू सदा बनके
शाहकार बहुत दहर में ख़ुदा की इनायत सदा हमपे
हम ऐसे फूल हैं ख़िज़ाँ में महकेंगे ख़ुश्बू सदा बनके ।
क़ुर्बान जाऊँ इसपे परवरदिगार लाज बचाये रखना ,
क़ाईल मौजे हवा से हूँ वो बदलते मौसम से हो गए
चेहरा-ए-अय्याम देखे कमाल बेदार इसी से हो गए ,
सई-ए-मुक़र्रर को सहने की अब ताब नहीं मुझमें
तज़कारा से क्या फायदा कोई अब चाव नहीं उनमें ,
उनकी फितरत है ऐसी खुदशनास भी होंगे खुद से
यही अज्ज होता है रस्मो-राह रखना रज़ील रुत से ,
कैसे सैय्याद हैं दहर में समय से जान लिया अच्छा
ऐसे सुकूत से ज़िंदगी को निजात मिल गया अच्छा ,
अवारगाने-शहर में वो रूप का ज़ेवर सजाये रक्खें
ग़लतफ़हमियों के आईने में ऐसे तेवर सजाए रक्खें ,
क़ाईल--संतुष्ट ,चेहरा-ए-अय्याम--लोगों के चेहरे
सई-ए-मुक़र्रर--किसी होनी के दुबारा घटने का अंदेशा
तज़कारा--बहस करना ,चर्चा ,खुदशनास-- खुद को पहचानना
अज्ज--परिणाम ,रस्मो-राह--वास्ता रखना ,रज़ील--क्षुद्र ,नीच
सैय्याद--शिकारी ,सुकूत--व्यवहार ,हयात--जीवन ,
अवारगाने-शहर--शहर में आवारा घूमने वाले।,
शाहकार--प्रशंसक,चाहने वाले
शैल सिंह
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