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ज़िन्दगी पर कविता

उम्मीदों से भरा जियो ज़िंदगी का विहान आसमान से ऊँचा रखो सपनों की उड़ान उठा करो गिर-गिर कर हिम्मत बटोर कर हर पल बिताओ ख़ुशी से बांहों में भरकर मुसीबत के बादलों को हौसलों से छांट दो मुश्क़िलों की खाई मुस्कुराहटों से पाट दो सीखना हम सबको साथ वक़्त के चलना नदी के जैसे कल-कल राह बना के बहना फैसला तक़दीरों का क्या ये लकीरें करेंगी ग़र है जज़्बा जीत का मुकाबलों से डरेंगी भले दूर हो मंज़िल कदम मगर ना रोकना पूरा करना मकसद बस सफ़र का सोचना ज़िन्दगी को ख़ुद के  मुताबिक जिया करो जो चीज हो पसंद उसे हासिल किया करो लौट कर ना आने वाला बीता हुआ लमहा उम्र यूं ही गुजर जायेगी हो जाना है तनहा सिर्फ सांस लेना ही नहीं ज़िंदगी का काम ख़्वाब,उम्मीदें ही ना हों तो ज़िन्दगी हराम जितने दर्द,क़र्ज़,फर्ज़ हमारी जिन्दगी में हैं उतनी वंदना की सूची रब की वन्दगी में है । सर्वाधिकार सुरक्षित             शैल सिंह