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जनवरी 13, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मन में किसका रूप धरोहर

मन में किसका रूप धरोहर  हृदय गुफा एक जंग है        पथिक मिलन स्थल है बिन अतिथि निष्प्राण प्रेम                         कितना व्यथित विकल है आँखों में उन्माद लिए        रूप सिंगार बिलसती है यौवन की मदिरा में      मानस की कली चटकती है मन में किसका रूप धरोहर      एकमात्र अवलम्बन है उठती टीस हृदय में     अरे यह किसकी मसलन है एक कुहासा छंटता है     फिर एक अनुराग पनपता है कहीं सुकुमार क्षणों में     कल्पना का गीत उभरता है चाह जिगर की बढ़ती है     प्राण यहाँ अकुलाते हैं अरे वैरागी वहां विनोदी को     कितने छाँव लुभाते हैं अभी तृषा समाप्त नहीं     पलकों में सपंने सजते हैं जीवन इतिहास का परिचय है     इसे ही मिटना कहते हैं