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अगस्त 30, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बह गए रेत से सपने सारे

    बह गए रेत से सपने सारे  सोंधी ख़ुश्बू वातायन में बिखरा तो दी हो बरखा रानी टूटही छान से रिस-रिस कर घर में टपक रहा है पानी महलों के बाशिंदों को देती रिमझिम सावन की फुहार हम गरीबन पर गाज गिराती भसकी छप्पर हुए उघार जगह-जगह दरकाती धरती बेकाबू बरखा मूसलाधार बंगलों की बगिया महका के गमलों में फूल खिलाई हो यहाँ गुरबत की बखिया उधेड़ जंगल की बाड़ लगाई हो बजबजा रही हो घाव मनमाने उद्दंड बारिश की बूंदों से टीसों में भर दी हो सिहरन, तेज हवा साथ इन झींसों से डगमग मंझधार में जीवन नैया नहीं यहाँ कोई खेवनहार हम ही सहते हैं मार सूखा की हमें ही करती बाढ़ बेजार कर्ज़ों में धँसी है हड्डी पसली घुन सा शरीर में लगा बुखार , आग उदर की भड़काती झोंपड़ी के चूल्हे की ठंडी राख आँखें आसमान टकटकी लगा काटीं जाग के कारी रात महलों के सब दिन लगें गुलाबी हमारे सब फीके त्यौहार कजरी,विरहा भूल गए,आल्हा,उदल बिसरा गीत मल्हार चाँदनी फिसलती रही रैन में बंगलों,मेहराबों,गलियारों से छलक रही आँखें असहायों की टकराकर ढही दीवारों से दूधिया ...

अफ़सोस ये भारत देश के वासी हैं

अफ़सोस ये भारत देश के वासी हैं  हमारा देश ' कृषि प्रधान देश ' के नाम से सबको मालूम,विश्व विख्यात है इसी देश के नौनिहाल अन्न उत्पाद कैसे होता अज्ञात हैं , अहाते की छोटी सी फुलवारी में पिछवाड़े की छोटी सी क्यारी में तड़ी पड़ी थी धान की बेटी सयानी पूछी मम्मा ये कैसी घासें हरी-हरी परिधान की मैंने बोला जरई है ये बोल रही क्या होता है ये  मैंने बोला रोपनी होगी बोली रोपनी क्या होता है मैंने बोला धान की रोपाई होगी बोली धान रोपाई क्या होता है मैंने बोला शर्म करो तुम राईस ब्रीडर की बेटी हो इसी घास को खाकर सब मटियामेट कर देती हो कृषि प्रधान देश में रहती हो केवल खाती पीती सोती हो रोपाई का मौसम है निहुर-निहुर रोप रही थीं मूल्यानी खेत ले जाकर उसे दिखाया देख ले खेती होती कैसे अज्ञानी जिन्होंने पढ़ते-लिखते कॅरियर बुनते गाँवों को कोसों पीछे छोड़ दिया क्या जानेंगे नवयुग के आज के बच्चे जिनने सब रिश्तों से मुँह मोड़ लिया जिनने खोली शहर में ऑंखें सुख वैभव की जिन्हें मिली विरासत उत्पादन कितने चरणों से होके गुजरता  क्या जाने ये लोग इनकी ऐसी नफ़ासत बेटी की सहेली औ...

खुद को सेंक दीए की लौ में ,

सींकती रही दीए की लौ में  अम्मा क्यूँ नहीं मुझको भी तूने  भैया सा घर में अधिकार दिया  हक़ मेरे हिस्से का काट-कपट  भैया को ही केवल प्यार दिया , मुझको भी गर ' पर ' मिलता  उड़ती-फिरती मुक़्त गगन में  माँ डाल सूरज के शहर बसेरा  सुर्ख़  सी उगती नील गगन में , स्वप्न सुनहरे ऊँचे-ऊँचे बूनती लिखती नित नई-नई इबारत दुनिया को दिखलाती क्या हूँ  किसमें हासिल मुझे महारत , मुक़्त पखेरू सी फ़िजां-फ़िजां माँ विचरण करती जी भरकर साँझ,भोर का डर,भय ना होता  चलती बेख़ौफ़ राह पर डटकर , चील,कौओं की घूरतीं निग़ाहें  शीशे से वदन को बेंधती ऑंखें कंचन तन ढाला कांच में क्यों  कुतर दी गईं उड़ानों की पाँखें , बाबुल के घर जन्मी पली बढ़ी ससुराल पिया का घर कहती  है कौन सा घर मेरा बतलाओ माँ कहाँ बता मेरी निज धरती , कोई  भी मोल ना जाना मेरा  तोली गई जाने कित रूपों में जली दीया सी सबके लिए मैं खुद को सेंक दीए की लौ में , फरियाद करूँ किस...

हौसलों का दीप ना बुझने पाये

हौसलों का दीप ना बुझने पाये  भारत माँ के वीर जवानों तेरी जननी आज ललकारे बहा दो खून की होली जला दो जगमग दीप सितारे , रंग-रंग में तेरी जमा है इस धरती का खून पसीना स्वराज्य करो सपूतों खड़ी रहूँ मैं गर्व से ताने सीना सर झुके न बैरी के आगे मेरी अभिलाषा वीरों प्यारे बहा दो …… । इस पावन धरती पर गैरों का पदचाप न पड़ने पाये ओ वीर सिपाही तेरी धरती माँ न कभी तड़पने पाये ऋण अदा करना गौरव से भर आँचल माँ का दुलारे बहा दो  .......। कभी ना मानना हार पुत्रों ना पग पीछे कभी हटाना स्वतन्त्र रहे ये भारत भूमि दुश्मन के छक्के छुड़ाना जलता रहे निरन्तर हौसलों का दीया ना बुझने पाये बहा दो  ….…।                     शैल सिंह 

'' काश कलम ग़र होती मेरी तलवार ''

काश कलम ग़र होती मेरी तलवार  मन में जब-जब जितने फूटे ज्वार बस हम बस कागज का पेट भरे कितने लाचार,मजबूर ,विवश हम जबकि खूँ में गर्मी जोश में है दम कैसे करें क्षरण इन उल्लुओं के उत्पात जो नहीं समझते सीधी-साधी बात छल ज़मीर में इनके संस्कार बदजात तभी तो करते बार-बार विश्वासघात हमने बस ईमान का पाठ पढ़ा और शांति,सद्भाव का यज्ञ किया नैतिकता में बंधे रहे ,संविधान का मान किया ताजीवन दूध पिलाते रहे संपोलों को और खुद बार-बार विषपान किया कितने हुए शहीद सपूत यहाँ के कितने अभी और शहादत देंगे लाल अभी और कितनी बार सहेंगे वार काश कलम ग़र होती मेरी तलवार हौसलों को मसि बनाकर शब्दों को देती तीखी धार { दाँत पीसकर }कर देती बदज़ातों का बंटाधार कोई अलगाववाद की बात करे और कोई मांगे हमसे मेरा कश्मीर सीने पर बैठकर दल रहे मूंग छुपकर घाव कर रहे गम्भीर अन्न,जल ग्रहण करें इस धरती का रुबाई गायें पापी पाकिस्तान की हमारे प्रेम सौहार्द को मटियामेट कर जाल बुनें बैठकर गोद में हिंदुस्तान की कोई अल्ला-मुल्ला के नाम पर दे रहा समस्त ज...