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बेटियों पर कविता,अँधेरों को कर ना दें बेपरदा ख़ामोशियाँ मेरी

बेटियों पर कविता अँधेरों को कर ना दें बेपरदा ख़ामोशियाँ मेरी  हमें अम्बर को छूना जी खोलो बेड़ियाँ मेरी जोश के पर पे उड़ने को बेचैन परियां मेरी  लहरों का नज़ारा बैठ साहिल पर देखें क्यों  भंवरों से करें अठखेलियाँ दो कश्तियाँ मेरी ,   दे दो हक़ हमें भी,आजादी हमें भी मर्दों सी ग़र मज़लूम ना होतीं न लगतीं बोलियां मेरी  उड़ना हमें भी हवाओं में उन्मुक्त पाँखी सा  अस्मत की ना खायें  नोंच  दरिंदे बोटियाँ मेरी , हमें खुल कर सांसों को लेने की इजाज़त दो करतब खूब दिखाएंगी हुनरमंद बेटियाँ मेरी  नहीं होना उत्सर्ग कनक पिंजरों के वैभवों में बग़ावत पे उतर ना जायें कहीं दुश्वारियां मेरी , ख़ुद को जला घर के अँथेरों को किया रौशन  किरण बाहर भी बिखरानी फैलें रश्मियाँ मेरी  अबला और ना बन देनी हमें हैं  अग्निपरीक्षाएँ  अँधेरों को  कर  ना  दें  बेपरदा  ख़ामोशियाँ  मेरी ,  ख़ुद चमकूँ  जुगुनू सा मैं दे दूँ चाँद को भी मात बा...

कविता -ढोंगी बाबाओं पर व्यंग्य

ढोंगी बाबाओं पर व्यंग्य आओ बच्चों तुम्हें सिखाएं, सम्पत्ति अर्जित करने के नायाब तरीके, झऊवा जैसे बाल बढ़ा लेना , छुट्टे बकरे के पूंछ सी झबरी दाढ़ी राम-रहीम का तमग़ा लटका लीला करना बनकर खूब मदारी, जर,जोरू,जमींदारी अनुयायी तेरे देखना सारी ज़ागीर लुटा देंगे बहन,बेटियों के अस्मत की भी देखना अंधभक्त बन्दे बाट लगा देंगे,   साध्वियों,सन्यासिनियों पर डोरे डालना लेना पड़े भले ही दो चार दस पंगे ग़र कोई करेगा बुलंद ख़िलाफ़ आवाज़  तो मुर्ख अशिक्षित लेकर लाठी डन्डे, विरोधियों,प्रशासन पर पिल पड़ेंगे वानर सेना सा तेरे पाले पागल ये गुंडे नागिन डांस करेंगे तेरे लिए अंधभक्त ये , डाल कर खुली आँखों पर पर्दे, राष्ट्रीय सम्पत्तियों को तहस-नहस कर प्रशासन के विरुद्ध रोष जताएंगे भक्ति के मद में डूबे ओ नकली ढोंगी  तेरे लिए ये मौत को भी गले लगाएंगे, नपुंसक तो सबसे पहले बनाना   अपने सेवकों और सेवादारों को हैसियत और रुतबे की धौंस दिखा धमकाकर रखना भक्त परिवारों को, खुद को ईश्वर का साक्षात् अवतार बता कुकर्मों से मस्त बनाना अंधि...