शैल रचना
ना मैं जानूं रदीफ़ ,काफिया ना मात्राओं की गणना , पंत, निराला की भाँति ना छंद व्याकरण भाषा बंधना , मकसद बस इक कतार में शुचि सुन्दर भावों को गढ़ना , अंतस के बहुविधि फूल झरे हैं गहराई उद्गारों की पढ़ना । निश्छल ,अविरल ,रसधार बही कल-कल भावों की सरिता , अंतर की छलका दी गागर फिर उमड़ी लहरों सी कविता , प्रतिष्ठित कवियों की कतार में अवतरित ,अपरचित फूल हूँ , साहित्य पथ की सुधि पाठकों अंजानी अनदेखी धूल हूँ । सर्वाधिकार सुरक्षित ''शैल सिंह'' Copyright '' shailsingh ''
सोमवार, 16 जनवरी 2023
हम बस यही अब चाहते हैं
कुछ शेर
कुछ शेर
मंगलवार, 10 जनवरी 2023
बड़ी कातिल है मुस्कुराहट मेरी
नाम का तेरे काजल लगाने लगी हूँ
लोग कहते बड़ी खूबसूरत हैं आँखें मेरी
चिलमन और भी अदा से उठाने गिराने लगी हूँ ।
शनिवार, 7 जनवरी 2023
कितनी शान से इतराता है तूं
रविवार, 1 जनवरी 2023
नव वर्ष पर कविता " समरसता की गागर छलके "
समरसता की गागर छलके
नव वर्ष लाये ऐसा उपहारमंगलवार, 20 दिसंबर 2022
ऐ ख़ुदा --
ऐ ख़ुदा --
ना तो हीरे रतन की मैं खान मांगती हूँ
ना चाँद,तारे,सूरज,आसमान मांगती हूँ
मेरे हिस्से की धूप का बस दे दे किला
जरुरत की जीस्त के सामान मांगती हूँ ।
फाड़कर ना दे छप्पर कि पागल हो जाऊँ
रूठकर ना दे मन का कि घायल हो जाऊँ
अपने दुवाओं की सारी कतरनें बख़्श देना
कि तेरी बंदगी की ख़ुदा मैं क़ायल हो जाऊँ ।
गुज़ारिश है आँखों में वो तदवीर बना देना
मेरी ख़्वाहिशों का मेरे तक़दीर बना देना
टूटकर कोई तारा फ़लक़ से दामन आ गिरे
मेरे बदा में वो ख़ूबसूरत तस्वीर बना देना ।
मंगलवार, 13 दिसंबर 2022
गज़ल " बहुत याद आये रे सावन की भींगी रातें "
कि लोग अन्दाज़ जाने लगा क्या लिए
हम बस यही अब चाहते हैं
हम बस यही अब चाहते हैं सिकुड़कर अब सुरक्षा के कवच में सारी ज़िन्दगी हम नहीं रहना चाहते नजरिये सोच फ़ितरत में सभी के अबसे बदलाव हैं हम देखना ...
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नई बहू का आगमन छोड़ी दहलीज़ बाबुल का आई घर मेरे बिठा पलकों पर रखूँगी तुझे अरमां मेरे । तुम्हारा अभिनंदन घर के इस चौबारे में फूल ब...
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“ ठंडी के मौसम पर कविता “ सर्दी तूं बड़ी बेदर्दी है लगती बर्फ़ से भी तूं ठंडी है धुंध में लिपटे सूर्य देवता नहीं किसी से हमदर्दी है , ...
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आँखों की करामात पर ग़ज़ल आँखों को मैंने अपनी घटा बना लिया है उमड़ कहीं न कह दें दिल का राज सारा इसलिए रख अधरों पे मुस्कान की डली भींगती रोज ...