सोमवार, 8 अप्रैल 2024

नव वर्ष मंगलमय हो

नव वर्ष मंगलमय हो 

प्रकृति ने रचाया अद्भुत श्रृंगार
बागों में बौर लिए टिकोरे का आकार,

खेत खलिहान सुनहरे परिधान किये धारण 
सेमल पुष्पों ने रंगोली रच धरा किया मनभावन 
मंद सुगन्धित हवाओं से वातावरण हुआ गुलजार 
नववर्ष, नवसंवत्सर का करना विशेष स्वागत सत्कार ।

प्रकृति है प्रसन्नचित्त प्रफुल्लित है बूटा-बूटा 
धरा-गगन चहुंओर नव पल्लव से सुगन्ध है फूटा
मन में उछाह उत्सुकता भरी प्रतिक्षा है शुभ होगा 
सूर्यवंशी रामलला का कोसलपुरी में सूर्यतिलक होगा ।

यह नवल वर्ष सनातनी गौरव का प्रतीक है
इसदिन सूर्य करेंगे राघव का अभिषेक वर्णित है
नवान्न फसलों से भंडार भर किसान आह्लादित हैं 
है सनातनियों का पर्व रामनवमी क्यों राम विवादित हैं ।

प्रकृति अपने पूर्ण यौवन पर झूम रही मानो
पुष्पों,पल्लवों फलों से वृक्ष आच्छादित हैं मानों 
नूतनं वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की चतुर्दिक जय हो
वैदिक सनातन नूतनवर्ष हर भारतीय को मंगलमय हो ।

पर्वों शुभ मुहूर्तों का मास चैत्र महिना आया
नव दुर्गे की उपासना का नव दिवस मन हर्षाया
द्वारे ध्वजा लगा स्वास्तिक बना रंगोली है सजाना
नवसंवत्सर के महत्व से अवगत इस पीढ़ी को कराना ।

सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 

सोमवार, 25 मार्च 2024

कल की आरजू में आज को गंवाना नहीं अच्छा
ना जाने क्या हो कल ये तो कोई नहीं है जानता 
आज कभी लौटकर नहीं आता है आज में जीयें
कल न जाने क्या घट जाए कोई नहीं है जानता।
शैल सिंह 

होली पर कविता


होली पर कविता ----

हम उत्सवधर्मी देश के वासी सभी पर मस्ती छाई 
प्रकृति भी लेती अंगड़ाई होली आई री होली आई,

मन में फागुन का उत्कर्ष अद्भुत होली का त्योहार 
बूढ़वे हो जाते युवा, चहुंओर आशा प्रेम का संचार 
पक फसलें हैं तैयार चढ़ा ऋतुपति का मधु खुमार,
द्वारे-द्वारे पर अनुगूंज,चौपाल,उलारा,बैठकी धमार

बौर आ गई अमराईयों में कूहुकने लगीं कोयलियां
मादक बहने लगी बयार फूटे कंठ से स्वर लहरिया
कहीं बुज़ुर्ग जवान हो बांधें समां बैठे नगर दुवरिया
तान छेड़ें फाग के गांव जवार लिए मृदंग झंझरिया,

दिन बीतता मठरी गुझिया में रात पूआ पकवान में 
भांग,ठंडाई पीस-पीस बैठकी गायें कंहार दलान में 
हरि की होली बरसाना में शिव की होली मसान में 
इतने हर्षौल्लास का पर्व होली नहीं कहीं जहान में,

हाथ गुलाल किसी के कंचन भरी केसर पिचकारी
कहीं नव उल्लास से नंद देवर सुनें भावज से गारी
उर के तार हुए झंकृत पिया ने रंगों से गात संवारी
रसियों ने रंग ऐसा डारा कि वस्त्र हो गये गुलकारी।
सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह 

गुरुवार, 14 सितंबर 2023

बड़े गुमान से उड़ान मेरी,विद्वेषी लोग आंके थे
ढहा सके ना शतरंज के बिसात बुलंद से ईरादे 
ध्येय ने बदल दिया मुक़द्दर संघर्ष की स्याही से
कद अंबर का झुका दिया मैंने हौसलों के आगे ।

प्रयास दोहराने में हो लीं साहस विफलतायें भी   
विस्तृत भरोसों ने खींचीं कल्पनाओं की रंगोली
असम्भव सी मिली जागीर जो है आज हाथों में
बन्द अप्रत्याशित प्रतिफल से निंदकों की बोली ।

कंटीली झाड़ियों,वीहड़ रास्तों पे चलकर अथक
बाधाओं को पराजित कर जीता जड़कर शतक
खड़ी तूफां से लड़कर साहिल पे योद्वा की तरह
ग़र लहरें करतीं अस्थिर कैसे पाते डरकर सदफ़ ।

पड़ाव ज़िंदगी में आया कितना उतार,चढ़ाव का 
खा-खा कर ठोकरें भी हम नायाब हीरा बन गये
बहुत लोगों को परखी ज़िंदगी दे देकर इम्तिहान
लोग समझे दौर खत्म मेरा देखो माहिरा बन गये ।

सदफ़--मोती ,  माहिरा--प्रतिभाशाली 
सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह

मंगलवार, 15 अगस्त 2023

पन्द्रस अगस्त पर--

पन्द्रस अगस्त पर--
आज का दिन हम भारत वासियों का ऐतिहासिक दिन है
दो सौ वर्षों के रण से मिले स्वतंत्रता का साहसिक दिन है
ये शुभ दिन वतन की आजादी का जश्न मनाने का दिन है
लाखों कुर्बानियों,बलिदानियों को स्मरण करने का दिन है
रक़्त बहाने वाले क्रान्तिकारियों को याद करने का दिन है 
आज आजादी का अमृत महोत्सव देश मनाने का दिन है
स्वाधीनता समर में शहीदों को संस्मरण कराने का दिन है 
आज का दिन देश के संघर्ष को देश को दर्शाने का दिन है ।
जय हिन्द, जय भारत, वन्दे मातरम्

शैल सिंह

शुक्रवार, 4 अगस्त 2023

भजन,— दरश दिखा दो केशव तरस रहे दो नैन ।

        भजन


रटते-रटते नाम तेरा  बीत गये दिन रैन 
दरश दिखा दो केशव तरस रहे दो नैन ।

दृग के दीप जलाये बैठी हूँ तेरे दर पर 
रोम-रोम में तुम ही बसे हो मेरे गिरिधर 
सुध-बुध खोई छवि उर में बसा तिहारा 
विरह में बावरी देह हुई  है सूख छुहारा 
पल-पल तेरी राह निहारूं जी है कुचैन 
दरश दिखा दो केशव तरस रहे दो नैन ।

यमुना तट वृंदावन गोकुल की गलियाँ 
गऊओं के गण कदम के तरू की छैंयाँ 
कितना तड़पाओगे बोलो बंशी बजैया 
गिरि कंदरा, वन-वन ढूंढा तुझे कन्हैया 
एक झलक दिखला दो आँखें हैं बेचैन 
दरश दिखा दो केशव तरस रहे दो नैन ।

चितचोर साँवरे की वो तिरछी चितवन 
कैसे बिसराऊँ बसे जो मन के मधुबन 
बजा के बाँसुरी रिझा के गीत सुना के 
छोड़े सखा किस हाल में प्रीत लगा के 
नहीं निभाये वादा कहकर गये जो बैन 
दरश दिखा दो केशव तरस रहे दो नैन ।

उधो जा कहो संदेशा नन्दलला से मेरी 
विरह तपस में झुलस रही है राधा तेरी 
कह गये एक महिना बीत गये छै मास 
कब आयेंगे कान्हा पूजेंगे मन के आस 
प्रेम दीवानी बना गये कर के इतने सैन 
दरश दिखा दो केशव तरस रहे दो नैन ।

कुचैन —बेचैन,  गण--समूह,     
बैन—वचन,   सैन---ईशारा, 
सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 

गुरुवार, 27 जुलाई 2023

सूखे सावन पर कविता‐---

बेरहम काली-काली घटा घेर-घेर घनघोर 
आँधी, तूफाँ साथ लिए करती रहती शोर ।

जैसे आषाढ़ मास बीत  गया सूखा-सूखा 
वैसे ना बीत जाये सावन भी रूखा-रूखा 
पपीहा गुहार करे कुहुकिनी कातर पुकारे 
धरा मनुहार करे फलक मोर दादुर निहारे 
उमड़-घुमड़ तड़तड़ाती दामिनी जोर-जोर 
आँधी, तूफाँ साथ लिए करती रहती शोर ।

क्यूँ बादल की चादर ओढ़े बैठी चितचोर 
तप्त है आकुल धरा व्याकुल हैं जीव ढोर 
सूने-सूने खेत क्यारी सूनी पगडण्डी खोर 
बरसो झमाझम घटा मन कर दो सराबोर 
कहीं कहीं मूसलाधार बरसती तूं मुँहजोर 
आँधी, तूफाँ साथ लिए करती रहती शोर ।

किसान टकटकी लगाए निहारे आसमान 
प्रियतम का पथ निरख है प्रेयसी परेशान 
कैसा मनभावन सावन जग लगे सुनसान 
बेरस वृष्टि के व्यवहार से झुलसे अरमान 
चमक-चमक ज़ुल्म करे बिजुरी झकझोर 
आँधी, तूफाँ साथ लिए करती रहती शोर ।

कहें किससे मन की बात पहाड़ लगे रात 
जी जलाये सावन और घटा की करामात 
सखियाँ अपने पिया संग विहँस करें बात 
सताये पी की याद लगे सेज नागिन भाँत 
बदलो मिज़ाज करो नहीं अनीति बरजोर 
आँधी, तूफाँ साथ लिए करती रहती शोर ।

सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 

नव वर्ष मंगलमय हो

नव वर्ष मंगलमय हो  प्रकृति ने रचाया अद्भुत श्रृंगार बागों में बौर लिए टिकोरे का आकार, खेत खलिहान सुनहरे परिधान किये धारण  सेमल पुष्पों ने रं...