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" मिज़ाज पूछा होता बिमारे दिल का "

भले तुम मिटा दो हर जगह से नाम मेरा मिटा न पाओगे लिखा दिल पे नाम मेरा । ख़फ़ा होने की भी वजह ना बताया ना आँखों से कहा कुछ न लबों से सुनाया  इक तेरा चेहरा बसा रखा निग़ाहों में ना होने देता तनहा सजा रखा ख़यालों में , यों मोहब्बत की खुश्बू तन्हाई में भी कराती तेरा एहसास रूसवाई में भी । कहीं रूठकर भी न जाना दूर हमसे चाहत की ज़िंदगी चार दिन की कसम से मिज़ाज पूछा होता बिमारे दिल का पता बहुत आसां था दिल के क़ातिल का , देखा ना तरसे नैनों की सदाक़त मेरी हँसके मुँह फेर लेना देख हालत मेरी । व्यथा की ईबारत सूरत से पढ़ लेना दिखा ना सकूं जिसे अनदेखा न कर देना  ख़्वाब क्यों दिखाया माहताब जैसा करके बावला मुहब्बत में आफ़ताब जैसा । दर्द दिल का देखकर परेशां ज़िग़र है सरापा से ग़म के बस तूंही बेख़बर है । सरापे--नख-शिख सहित सदाक़त--सच्चाई,सत्यता सर्वाधिकार सुरक्षित शैल सिंह