सावन पर कविता
न जाने तुमसे लगी ये कैसी लगन
बुझा पाये न सावन ये ऐसी अगन
झीनी- झीनी फुहारें भिंगोयें वदन
सावन तुम बिन बीता जाये सजन ।
बुझा पाये न सावन ये ऐसी अगन
झीनी- झीनी फुहारें भिंगोयें वदन
सावन तुम बिन बीता जाये सजन ।
नहीं बरसो रे सावन झरने लगेंगे नयन
जो हैं एहसासों के तोहफ़े सहेजे नयन
भींगे रहना मंज़ूर अनुरागी एहसासों में
संग बह जायेंगे जो ऐसे ये बरसेंगे नयन ।
जो हैं एहसासों के तोहफ़े सहेजे नयन
भींगे रहना मंज़ूर अनुरागी एहसासों में
संग बह जायेंगे जो ऐसे ये बरसेंगे नयन ।
उनके अनुरक्ति में जितना भींगा है तन
रत्ती भर भी नहीं सावन में दिखा है दम
उनके स्पर्श की तरिणी में तैरने दो मुझे
भींगो दे आँखों का समन्दर भले पैरहन ।
रत्ती भर भी नहीं सावन में दिखा है दम
उनके स्पर्श की तरिणी में तैरने दो मुझे
भींगो दे आँखों का समन्दर भले पैरहन ।
सुहानी शामें वही मंजर याद आ जायेंगे
जो उनके संग देखीं बरसातें छा जायेंगे
जाके उनके शहर भी बरसकर बता दो
ऋतु है सावन का जल्दी घर आ जायेंगे ।
जाके उनके शहर भी बरसकर बता दो
ऋतु है सावन का जल्दी घर आ जायेंगे ।
बोले कुहू-कुहू पिक,पिऊ-पिऊ पपिहा
वैसे पुकारती पी कहाँ विकल हो जिह्वा
वैसे पुकारती पी कहाँ विकल हो जिह्वा
दिन-रैन,चित्त अधीर विषधर विरहा हुई
बिदके दर्पण सिंगार जब निहारती पिया ।
तुम्हारी याद में हुआ बारहो मास सावन
झड़ी अश्रुओं की देख हार जाता सावन
मन का मधुवन जले पी भरी बरसात में
पड़ी आँखों तले झांईं राह देखते साजन ।
मन का मधुवन जले पी भरी बरसात में
पड़ी आँखों तले झांईं राह देखते साजन ।
तृषित विरहन का आँचल सुहागिन धरा
मेघ,मल्हार,रूत,मौसम,फुहारें,औ हवा
मेघ,मल्हार,रूत,मौसम,फुहारें,औ हवा
इनकी आवारगी औ शरारत परेशां करे
ऐसे व्याधि के हो प्रीतम बस तुम ही दवा ।
ऐसे व्याधि के हो प्रीतम बस तुम ही दवा ।
पैरहन-- वस्त्र पोशाक
सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह