रिमझिम पड़ें फुहारें जल की,बूँदें लगें सुखदाई
रिमझिम पड़ें फुहारें जल की,बूँदें लगें सुखदाई बहुत सुहावन अति मनभावन सावन का महीना व्रत,त्यौहारों का पावन मास सावन मास नगीना । सुमधुर स्वर में गाये कोयलिया दादुर छेड़े तान सुन के सिहर उठे करेजा विरही चातक के गान आस हुए सब मन के पूरे उत्फुल्ल हुए किसान लगे दुलहन सी सजी धरा हरित पहिर परिधान । रिमझिम पड़ें फुहारें जल की,बूँदें लगें सुखदाई भरें हृदय में तरं ग सं गीत सा बहे मादक पुरवाई छटा बिखेरे काली घटा सुषमा चहुँओर बिछाई मन मोहे मोर का नर्तन नाचे पर फहरा अमराई । सोंधी-सोंधीं गंध उठे उपवन की महक निराली इंद्रधनुष की आभा न्यारी खोल लटें बिखरा ली गूँज उठे कजरी के धुन पड़े झूले नीम की डाली जेठ की तपती गर्मी ,स्वेद से मुक्ति सबने पा ली । पहन कर हरी चूड़ी कलाई मेंहदी रच हथेली में पी घर गईं सखी ...