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रिमझिम पड़ें फुहारें जल की,बूँदें लगें सुखदाई

रिमझिम पड़ें फुहारें जल की,बूँदें लगें सुखदाई बहुत सुहावन अति मनभावन सावन का महीना  व्रत,त्यौहारों का पावन मास   सावन मास नगीना । सुमधुर स्वर में  गाये कोयलिया दादुर छेड़े तान सुन के  सिहर उठे  करेजा विरही चातक के गान आस हुए सब मन के पूरे  उत्फुल्ल   हुए किसान  लगे दुलहन सी  सजी धरा  हरित  पहिर परिधान । रिमझिम  पड़ें  फुहारें  जल की,बूँदें  लगें  सुखदाई भरें   हृदय  में तरं ग  सं गीत सा   बहे  मादक   पुरवाई   छटा  बिखेरे काली घटा   सुषमा चहुँओर  बिछाई  मन मोहे मोर का  नर्तन  नाचे  पर फहरा   अमराई । सोंधी-सोंधीं गंध उठे उपवन की महक निराली इंद्रधनुष की आभा न्यारी    खोल  लटें  बिखरा ली गूँज उठे  कजरी के धुन   पड़े  झूले   नीम की  डाली जेठ की तपती गर्मी ,स्वेद से  मुक्ति  सबने पा ली । पहन कर हरी चूड़ी कलाई मेंहदी रच हथेली में पी  घर  गईं   सखी ...

कहना मुश्किल जो लफ़्ज़ों में

कहना मुश्किल जो लफ़्ज़ों में  मुझे जब भी सताये याद तेरी ले कर तस्वीर तुम्हारी हाथों में नयनों की तृषा बुझा सुख पा लेती हूँ । हँसी के पर्त में दर्द छुपाकर यादों के तराने होंठों पे सजाकर  गा-गा कर ग़म पर विजय पा लेती हूँ । कहना मुश्किल जो लफ़्ज़ों में  लिख कर ख़ामोशी से पन्नों पर  अंदर के निनाद से नजात पा लेती हूँ । अक्सर ही हृदय के प्रांगण में हू-ब-हू सजाकर अक्स तुम्हारा दृग को दरश करा दौलत पा लेती हूँ । बहुत वफ़ादार हैं यादें तुम्हारी निभाती रहीं जो वादे आज तलक़ वादों के सौगात से हयात पा लेती हूँ । जो दर्द छिपा रखी हूँ सीने में उस दर्द की कोई माकूल दवा नहीं दर्द से ही दर्द का उपचार पा लेती हूँ । सर्वाधिकार सुरक्षित                    शैल सिंह