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सितंबर 17, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

क्षणिका

क्षणिकाएं  क्यूँ इतना वक़्त ली ज़िन्दगी खुद को समझने औ समझाने में समझ के इतने फ़लक पे ला छोड़ दी किस मोड़ पे ला विराने में बोलो अब उम्र कहाँ है वक़्त लिए वक़्त बचा जो खर्च कर रही तुझे बहलाने में। कुछ लोगों ने महफ़िलों में  ये आभास कराया जैसे पहचानते नहीं ,  मैंने भी जता दिया  जैसे मै उन्हें जानती नहीं ,  शिद्दत से तराशें ग़र हम हौसलों को कद आसमां का खुद-बख़ुद झुक जायेगा राह कोसों हों दूर मंज़िल की चाहे मगर खुद मंजिलों पे सफर जाकर रुक जायेगा।                    

तन्हाई पर कविता गुजरे मौसम की याद दिलाती

तन्हाई पर कविता   गुजरे मौसम की याद दिलाती यादों के शुष्क बिछौने पर भीगीं-भीगीं सिमसिम रात तन्हाई से करती बातें नैनों की रिमझिम बरसात  जाने कहाँ-कहांँ भटकाती रात , पलकों की सरहद तक आ-आ  नींद काफूर हो जाती है बेचैन रात की आलम का सिलवट दस्तूर बताती है उन्नीदी आंँखों में बीति सारी रात , हठ करती बचपन की क्रिड़ायें अबोध अल्ह़ड़पन  यौनापन का  काश कि मुट्ठी में बंद कर रखती कुछ हसीं पलों के छितरेपन का कभी ना होती इतनी  बेवफ़ा रात , हर पहर,रैन की क़ातिल होकर  गुजरे मौसम की याद दिलाती   बेदर्द वीरानी  बन मेरी हमदर्द    रख  पहलू में हँसाती और रुलाती तन्हा और बनाती तन्हाई की रात , ना जाने क्यूँ तन्हाई में यादें ज़िक्र करती हैं पुराने मंजर का तल्ख़ी और उदासी भर देतीं काम करती हैं जादू-मंतर का ख़्यालों में डूबी,उतराई सारी रात                                  शैल सिंह ...

'' तिरंगा तन सजा सोचा न था तेरा मन दुखा दूं माँ ''

एक शहीद की अन्तर्व्यथा माँ के लिए  ऐ मेरे मित्रों मेरे गांव तुझसे मेरे हिन्द ये कहना है शहीदों के मज़ारों पर नित्य दीप जलाये रखना है , याद आए मेरी दिल को जरा समझा लिया करना लगा सीने से तस्वीरों को मन बहला लिया करना हर्गिज़ कोसना मत देश को ऐ त्यागमयी माताओं लाल था देश का तेरा मन को बतला दिया करना , समझना गहरी नींद सोया हूँ तेरी लोरी सुन के माँ जां कुर्बान वतन पर की कि तेरा कर्ज़ चुका दूँ माँ आँसू अच्छे नहीं लगते योद्धा की माँ की आँखों में तिरंगा तन सजा सोचा ना था तेरा मन दुखा दूं माँ , माँ तेरे कोंख का मैं ऋण चुका पाया नहीं तो क्या प्रिये का साथ जीवन भर निभा पाया नहीं तो क्या भारत माँ के चरणों में थी चाहत  वीरगति  हो प्राप्त  अमर बलिदान की गाथा लिख सोया नहीं तो क्या , राष्ट्र के ग़ौरव लिए माँ लाड़ल़ा तेरा प्राण गंवाया है नमन कर लो उन्हें जिनने तुझे आजादी दिलाया है कायर आँसुओं से क्यों भिगोती दाम...