क्षणिकाएं
क्यूँ इतना वक़्त ली ज़िन्दगी
खुद को समझने औ समझाने में
समझ के इतने फ़लक पे ला
छोड़ दी किस मोड़ पे ला विराने में
बोलो अब उम्र कहाँ है वक़्त लिए
वक़्त बचा जो खर्च कर रही तुझे बहलाने में।
कुछ लोगों ने महफ़िलों में
ये आभास कराया
जैसे पहचानते नहीं ,
मैंने भी जता दिया
जैसे मै उन्हें जानती नहीं ,
कद आसमां का खुद-बख़ुद झुक जायेगा
राह कोसों हों दूर मंज़िल की चाहे मगर
खुद मंजिलों पे सफर जाकर रुक जायेगा।