रविवार, 3 मई 2020

इतनी पाबन्दियां होंगी गले अपनों को लगा ना पायेंगे " कोरोना पर "

इतनी पाबन्दियां होंगी गले अपनों को लगा ना पायेंगे


कभी सोचे ना थे हम ज़िन्दगी में दिन ऐसे भी आयेंगे 
पहिया वक्त का थम जायेगा ठप व्यवसाय हो जायेंगे ।

ऐसा क़हर कोरोना ढायेगा जुगत कुछ कर ना पायेंगे
निलय में ख़ुद को रख बंधक तन्हा दिन-रैन बितायेंगे
बहेगी शुद्ध,स्वचछ,निर्दोष हवा लुत्फ़ उठा ना पायेंगे
लहरेगी गंगा माँ में पावन धार  तृष्णा मिटा ना पायेंगे 
कभी सोचे ना थे हम ज़िन्दगी में दिन ऐसे भी आयेंगे ।

वक़्त ही वक़्त रहेगा पास मन की बात कर ना पायेंगे
होंगे सखा,सनेही के बंद किवाड़ हम मिल ना पायेंगे 
पकेंगे घर में बहु व्यंजन  स्वजन को खिला ना पायेंगे
खाली सूनसान सड़क पर भी सवारी दौड़ा ना पायेंगे
कभी सोचे ना थे हम  ज़िन्दगी में दिन ऐसे भी आयेंगे ।

निर्धन मजलूमों के कारोबार के रास्ते बन्द हो जायेंगे
घर में होगी भरी विभूति,पूर्ण आकांक्षा कर ना पायेंगे
मचलते मन को वश में कर के मलते हाथ रह जायेंगे
लाॅकडाउन के पालन में अवकाश भी मना ना पायेंगे
कभी सोचे ना थे हम  ज़िन्दगी में दिन ऐसे भी आयेंगे ।

जहां से हो जाये अलविदा कोई अपना देख ना पायेंगे
बुरे परिस्थिति में फंसे इंसान को अवलंब दे ना पायेंगे
इतनी पाबन्दियां होंगी गले अपनों को लगा ना पायेंगे
जाबा जानवरों सा होगा मुँह पर हाथ मिला ना पायेंगे
कभी सोचे ना थे हम  ज़िन्दगी में दिन ऐसे भी आयेंगे ।

वैरी,दुश्मन चलेंगे चाल सरहदों पे,हम देख ना पायेंगे
सन्नाटा शहरों में पसरा होगा हम कुछ कर ना पायेंगे
नभ की छटा विलक्षण समंदर गंदगी मुक्त हो जायेंगे
सब मन अनुकूल होते हुए भी  हम मजबूर हो जायेंगे
कभी सोचे ना थे हम  ज़िन्दगी में दिन ऐसे भी आयेंगे ।

सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह 



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