ग़ज़ल
ग़ज़ल दिल के निगाहख़ाने कभी तो झाँक लेते इन्तज़ार मौसमे-रंग का करते ही रह गए । जख़्म देके पूछते हैं दर्द होता कहाँ है पूछने से और भी अज़ाब होता जवां है वक़्त की अलामत हर जख़्म हो गए हैं कैसे दिखाएं उनके निशां कहाँ-कहाँ हैं । ख़ुशी के फूल बांटती बज़्में-रौनक थी जो सैले-नज़र ढूँढ़ती हल्काए-ज़ंज़ीर जहाँ है मवाद बनके टीसते हैं सुलूक़ों की दास्ताँ दिल में असास दमे-आखिर तक जमा है । दामन में नूर हैं तमाम मुअत्तर है ज़िंदगी बू का क्या करें टूटा ख़्वाबों का कारवाँ है दिल के हक़-तलब से वाक़िफ़ ही नहीं जो मतलूब क्या मेरी कैसी इश्तियाकें रवां है । तक़ाज़े क्या ज़िन्दगी के क्या ख़्वाहिशें मेरी कैसे कहें जुबां से किया हर्फों में सब बयां है दस्तो-दर भटक रहे हैं ख़ुशी की तलाश में वो भी जानते हैं बखूब जो दोनों के दरम्यां है । हाले-दिल सुना सके ना ग़ज़ल बना लिया गुमनाम हसरतों का गवाह आईना यहाँ है कैसे करे साझा हया,उरियानियों की बातें रेखाएं कुछ सीमाओं की,बन्द रखा ...