गुजरे ज़माने की बातें
काल खण्ड की बातें सब कुछ आज है पास मेरे नहीं जो साथ रहा करते थे हम बाबूजी की पर्णकुटी में आनंद विहार किया करते थे , थोड़ा ही सुख था तो भी क्या दुःख थोड़ा ही किया करते थे बैठ कुटुम्ब कबीला संग,नव प्रेरक सद्भाव बहा करते थे , अभावग्रस्त था जीवन फिर भी लघु दीप जला करते आदर्शों के अनुकंपा असीम देवों की बरसती लक्ष्य होते बस रोटी,घर,वस्त्रों के , नत शीश हृदय से जोड़ अंजुरियाँ प्रभु का आह्वान किया करते थे देवत्व,साधना,तप,स्तुति में नयना शाश्वत सुख अभिराम किया करते थे , तृप्ति थी संतुष्टि अपार भी अवसाद नहीं दबाव था कोई नेह,दया,अनुराग अलख भाव मन आँगन करुणा पूँजी बोई , नहीं ईर्ष्या,द्वेष,क्लेश किसी से ना दंभ,भय,लोभ किसी से कोई पाट की खाट पर सारी रतिया सबने सुख की निंदिया सोई , साधन,सम्पति,समृद्धि सब कुछ हृदय घट ही क्यों है सूख गया जिस पनघट पर सब मिलते थे,वो अलमस्त आलम कहाँ म...