सोमवार, 10 फ़रवरी 2020

" कब होगा आँगना में आगमन तुम्हारा "

कुम्हला गए ताजे पुहुपों के वंदनवार
पथरा गये नैना खंजन करके इंतज़ार
बीते दिवस कित बीति जाये कित रैन
चली गईं जाने कित आ आकर बहार ,

मुरझा गया कुन्तल केश सजा गजरा
विरक्त लगे चन्द्रमुखी चक्षु का कजरा
लुप्त हो गई लाली रक्तिम कपोल की
अविरल वर्षे नेत्र भींजे कंचुकी अंचरा ,

संभाला ना जाये धड़कनों का आवेग
आएगी मिलन की कब रुत का उद्वेग
कब होगा आँगना में आगमन तुम्हारा  
सहा जाये ना भावाकुल उर का संवेग ,

पलकों पे छाई रहती याद की ख़ुमारी
छवि अंत:करण बसी अनुपम तुम्हारी
गुनगुनाते,मंडराते अलि जैसे रात-दिन
ताड़ प्रीत की ख़ूब उत्कंठा तुम हमारी ,

अनकहे भाव अलंकृत शब्दों से करके 
रचनाओं में सृजित करूं मर्म विरह के
अन्तर्मन की पीर संग्रह गीतों में करके
गुनगुनाया करती नीर दो दृगों में भरके ,

करती स्वर रागिनी से कलह असावरी
अवसादों से भरी काटूं विरह विभावरी
कर ख़ुद से हुज्जत जुन्हाई भरी रैन में
अपलक निहारूँ चाँद,जैसे कोई बावरी ,

अविलंब हरषा जा उतप्त हृदय आकर 
सर्दी के घाम सी नेहवृष्टि कर आस पर
सन्निपात व्याधि जैसी रूग्ण काया हुई
कल्पना के उड़ती उन्मुक्त आकाश पर ।

आसावरी--सुबह की एक रागिनी।
सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 

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