एक दीवाना ऐसा भी
एक दीवाना ऐसा भी हटा दो लाज का पहरा सबर आँखों का जाता है मेरी बेचैन चाहत को अदा नायाब भाता है। काली घटा सी जुल्फ़ें क्या बिजली गिराती हो मैं मदहोश हुआ जाता ग़जब चिलमन गिराती हो। चुराकर चैन सोती तुम सपन की मीठी बाँहों में पल भर कटी ना रातें मगन बोझल निग़ाहों में। अगर तुम ला नहीं सकतीं जुबां पर दिल की वो बातें निग़ाहों से बयां कर देतीं जुबां और दिल की वो बातें। तेरे खंजर नयन नशीले कहीं जान ना मेरी ले लें सुर्ख लबालब होंठ रसीले ...