गुरुवार, 21 फ़रवरी 2013

एक दीवाना ऐसा भी

एक दीवाना ऐसा भी 

हटा दो लाज का  पहरा 

    सबर आँखों का जाता है  

         मेरी बेचैन चाहत को 

              अदा नायाब भाता है। 

काली घटा सी जुल्फ़ें 

   क्या बिजली गिराती हो 

       मैं मदहोश हुआ जाता 

          ग़जब चिलमन गिराती हो। 

चुराकर चैन सोती तुम 

     सपन की मीठी बाँहों में 

         पल भर कटी ना रातें

             मगन बोझल निग़ाहों में। 

अगर तुम ला नहीं सकतीं

    जुबां पर दिल की वो बातें 

      निग़ाहों से बयां कर देतीं 

         जुबां और दिल की वो बातें।

तेरे खंजर नयन नशीले 

   कहीं जान ना मेरी ले लें 

      सुर्ख लबालब होंठ रसीले    

          मोहब्बत सरेआम ना पीले। 

  ऑंखें मदभरी मधुशाला 

        तिल क़ातिल गाल गुलाबी है  

           अकारथ ही हुआ मतवाला 

               रंग-ढंग भी चाल नवाबी है। 

पिलाकर मय निग़ाहों का 

    ना यूं नज़रें झुकाकर चल 

       दबाकर दिल की चाहत को 

          ना दिल को यूं जलाकर चल। 

तुझे देखूं तो आता चैन 

   नहीं तो दिल को बेचैनी 

      क़यामत क्यों हो ढाती यूं 

            बता दो ना वो मृगनयनी। 

रुसवाई का डर है ग़र 

    ग़र है ख़ौफ ज़माने का 

       तो बेख़ौफ़ इनायत कर 

           कर परवाह दीवाने का। 

 ख़ुदा की कसम ज़न्नत 

     तेरे क़दमों में बिछा दूंगा

       अगर तूं चाँद मांगे जानम 

           ज़मीं पर ला दिखा दूंगा।  

कसीदा तुम गज़ल की हो 

   लय,सुर,ताल नग़मों की 

        इन्तेहा प्यार की ग़र चाहो

            तो ले लो सात जन्मों की। 

कर दीदार ज़ालिम खोल 

   झरोखा दिल के दरपन का

       क्या हालत है रोज़ो-शब

           दीवाने दिल की धड़कन का। 

कहते लोग परेशां मुझको 

   कहाँ एहसास खुद का मुझको 

        हाँ औरों से सुना है जानेमन  

           मेरे हालात मालूम तुझको। 

ग़र तुम पास होते दिलवर 

    समां का लुत्फ लेते छक कर  

         फिजां भींगी सुहाना मौसम 

              होता ग़र बांहों में लेते भर कर।  

ख़त लिखना नहीं वाज़िब 

   दिलो-जां में हो तुम रहती 

       तुझे हर हर्फ़ मालूम ख़त के 

             सांसों में हरवक़्त समायी रहती।  


        रोज़ो-शब----दिन-रात 

 

 

  

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