ना मैं जानूं रदीफ़ ,काफिया ना मात्राओं की गणना , पंत, निराला की भाँति ना छंद व्याकरण भाषा बंधना , मकसद बस इक कतार में शुचि सुन्दर भावों को गढ़ना , अंतस के बहुविधि फूल झरे हैं गहराई उद्गारों की पढ़ना । निश्छल ,अविरल ,रसधार बही कल-कल भावों की सरिता , अंतर की छलका दी गागर फिर उमड़ी लहरों सी कविता , प्रतिष्ठित कवियों की कतार में अवतरित ,अपरचित फूल हूँ , साहित्य पथ की सुधि पाठकों अंजानी अनदेखी धूल हूँ । सर्वाधिकार सुरक्षित ''शैल सिंह'' Copyright '' shailsingh ''
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ओ शेरा वाली माँ
तेरे शरण में आई माँ रिद्धि-सिद्धि दे-दे भर-भर आँचल दे आशीष वंशवृद्धि कर दे भर दे मेरा हृदय ज्ञान से ध्यान में चित्त रमा दे मन्नत मांगने तेरी...
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नई बहू का आगमन छोड़ी दहलीज़ बाबुल का आई घर मेरे बिठा पलकों पर रखूँगी तुझे अरमां मेरे । तुम्हारा अभिनंदन घर के इस चौबारे में फूल ब...
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रिमझिम पड़ें फुहारें जल की,बूँदें लगें सुखदाई बहुत सुहावन अति मनभावन सावन का महीना व्रत,त्यौहारों का पावन मास सावन मास नगीना । सुमधुर स्व...
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दर्द भरी गज़ल दर्द तो उमड़ा बहुत आँसुओं में बह जाने के लिए हम तो बस हँसते रहे आँसुओं को छुपाने के लिए । ज़िंदगी को दर्दे अश्क़ का ...