कविता '' प्रीत का दीया जला दो आकर ''
'' प्रीत का दीया जला दो आकर '' अन्तस के गह्वर मौन सिंधु में इक बार उतर जो आओ तुम विरहाकुल के अकथ नाद से परिज्ञान तेरा भी हो जायेगा , कितने तुम पर गीत लिखे हैं कितने स्वर साधे हैं तुम पर विकल रागिनी के झंकारों से उर झंकृत तेरा भी हो जायेगा , सांसों का हर तार है जोड़ा तेरे स्मृति की वीणा,सितार में मेरे गीतों की गुंजित ध्वनि में अमर नाम तेरा भी हो जायेगा , आकर पुलिन पर सौहार्द का बहा दो मलयानील सा झोंका लहरों के नेहल उद्गम से भींग तर अन्तर तेरा भी हो जायेगा , तुम देखे बस श्रृंगार आनन का देखी न कभी भीतर की सज्जा प्रीत का दीया जला दो आकर प्रणय प्रखर तेरा भी हो जायेगा , मोह के अटूट धागों में बांध रख लूँगी देवतुल्य मानस के निविड़ निकुंज में प्रिय तुझको मुझमें दरश तेरा भी हो जायेगा , तुम्हीं हो सूत्रधार काव्योत्पत्ति के...