शुक्रवार, 27 दिसंबर 2019

कविता '' प्रीत का दीया जला दो आकर ''

''  प्रीत का दीया जला दो आकर ''


अन्तस के गह्वर मौन सिंधु में
इक बार उतर जो आओ तुम
विरहाकुल के अकथ नाद से
परिज्ञान  तेरा  भी हो  जायेगा ,

कितने  तुम  पर गीत लिखे हैं
कितने  स्वर साधे  हैं तुम  पर
विकल रागिनी  के झंकारों से
उर झंकृत तेरा भी हो जायेगा ,

सांसों  का  हर तार  है  जोड़ा
तेरे स्मृति की वीणा,सितार में
मेरे गीतों की गुंजित  ध्वनि में 
अमर नाम तेरा भी हो जायेगा ,

आकर पुलिन पर सौहार्द का
बहा दो मलयानील सा झोंका
लहरों के नेहल उद्गम से भींग
तर अन्तर तेरा भी हो जायेगा ,

तुम देखे बस श्रृंगार आनन का
देखी न कभी भीतर की सज्जा
प्रीत का दीया जला दो आकर
प्रणय प्रखर तेरा भी हो जायेगा ,

मोह  के  अटूट  धागों  में  बांध
रख  लूँगी  देवतुल्य  मानस  के
निविड़  निकुंज में प्रिय तुझको
मुझमें दरश तेरा भी हो जायेगा ,  

तुम्हीं हो सूत्रधार काव्योत्पत्ति के
हो तुम्हीं  कथानक अभिप्राय के
उतर आओ भावों की ध्रुवनंदा में
तो साक्षात्कार तेरा भी हो जायेगा।

नेहल-- सुन्दर ,आनन --मुखड़ा

सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह 

रविवार, 22 दिसंबर 2019

भोजपुरी में मेरी एक रचना '' एक सैनिक की पत्नी का करुण विलाप ''

भोजपुरी में मेरी एक रचना

एक सैनिक की पत्नी का करुण विलाप

सुनसान लागे भवनवाँ
झनके अँगनवाँ
निसदिन विछोह में
ढरके नयनवां
जल्दी छुट्टी लेके आजा
घरवा सजनवां,

गहि-गहि मारेलीं
सासु रानी तनवाँ
सहलो ना जाये हाय
छोटी ननदो के मेहनवां
लहुरा देवरवा रगरी
हवे बड़ा शैतनवां
हुक़्क़ा नियर बड़बड़ालें  
ससुरु बइठि दुवरवा
जल्दी छुट्टी लेके आजा
घरवा सजनवां,

विरही कोइलिया करे
राग धरि बयनवां
पापी पपीहरा के
सुनि पिहकनवां
ड्योढ़ी अस पिंजरा में
बंद जईसे हईं सुगनवाँ
भीतर-भीतर तड़फड़ाला
हिया के मयनवां
जल्दी छुट्टी लेके आजा
घरवा सजनवां,

भावे ना सिंगार तन
विरावेला गहनवां
देहिया जरावे चन्दा
उतरि के अँगनवाँ
सिमवा पर जिया देई-देई
तजि देबा परनवां
आ चैनवां क नींद सूतिहें
सगरो जहनवां
जल्दी छुट्टी लेके आजा
घरवा सजनवां

नईहरे ना मई-बाप
ना एकहु विरनवां
गांव गोईड़ार छूटल
तोहरे करनवां
सखियां सहेलियाँ भी
गईलीं गवनवाँ
गोदिया में खेलें उनके
सुघर सलोना ललनवां
जल्दी छुट्टी लेके आजा
घरवा सजनवां।


सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह 

यादों के झरोखे से

यादों के झरोखे से 


आया मौसम सर्दी का
लगे खुशग़वार हर लमहा
खनक हँसी की घुली फिज़ा
स्वेद,शिशिर से डर कर सहमा,

नए वर्ष की आहट पे
नए-नए हुए सपने पंकिल
स्वागत में तल्लीन नवागत के
घर-घर जली खुशी की कंदील,

बहे कभी पछुवा,पुरवा
कभी रवि पे मेघ दे पहरा
बिलम है जाती धूप कभी तो
घटा बरसे कभी कुन्तल लहरा,

बहें हुलसती हवाएं जब
आई याद कन्टोप औ गांती
अनुपम उद्यान में प्रसून खिले
पर लगे न सरसों पुष्प की भाँति ,

तपिश गई सूरज की
गुनगुनी धूप सेंके वदन
लद गई तन पे गरम रजाई
रूत लगती नई नवोढ़ी दुलहन,

कुरुई,मऊनी आई याद
दाना,चूरा,ढूंढा,नैका भात
रेवड़ा,गट्टा,नई भेली,संक्रांति
कहाँ रही वैसी त्यौहारों में बात,

सुखद सुनहरी धूप गई
गई सुगबुगाहट कौड़े की
अल्हड़ सी अबोध अठखेली
गई चहल-पहल कोल्हउड़े की,

खोल अतीत का पन्ना
विह्वल करें शरारती यादें
नादां बचपन रंगी वो दुनिया
बीते लम्हों की आकृतियां झाँकें,

वक़्त पखेरू सौदाई
छीन अमीरी बचपन की
दे-दे लालच मूढ़ जवानी का
धन लूटा अमोल लड़कपन की,

कुड़कुड़ाती ठण्ड बहुत
कैसे भूलें आजी की बोरसी
धुएं सम भाप निकाले मुँह से
मना रही मृदु यादों की खोरसी ।

खोरसी--सूतक
सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह




बचपन कितना सलोना था

बचपन कितना सलोना था---                                           मीठी-मीठी यादें भूली बिसरी बातें पल स्वर्णिम सुहाना  नटखट भोलापन यारों से क...