'' हम प्रेम का वृक्ष लगाएं ''
                       कविता    विनम्रता और सहजता लाएं हम सब अपने जीवन में  क्यों तोड़ते जा रहे नित हम मानवता की परिपाटी को  अभिव्यक्ति की आज़ादी का प्रहार संवेदना के ढाँचे पर  उष्ण होती हृदय की तरलता,सामंजस्य का होता ह्रास  उदारता,सहिष्णुता,त्याग,दया का ,उर मरुस्थल होता आज  प्रेम स्वरूपा प्रकृति से कुछ नहीं सीखा हम सबने  निःस्वार्थ भाव से वृक्ष सदा हमें फल-फूल दिया करते हैं  फलों से लदी डालियाँ सदा झुकी शालीन क्यों रहती हैं  बिना शुल्क नदियां हमें सदा जल देती रहती हैं  फिर भी नहीं कभी कोई उलाहनें देती हैं  इनकी मौन प्रवृति से प्रेरित हो हम प्रेम का वृक्ष लगाएं  नदी की देख दानशीलता हम प्रेम की नदी बहायें  सबसे कठिन है प्रेम सभी से कर पाना और निभाना  पर प्रेम जरुरी जीवन में,हम समरसता की पौध उगाएं  अभिमान,घमंड,अहंकार से जीवन नरक बन जाता है  करुणा,संवेदना,परमार्थ,सौहार्द्र से हम जीवन स्वर्ग बनायें |                           ...